tag:blogger.com,1999:blog-261243547015665954.post7027149666359831551..comments2023-10-17T00:49:17.792-07:00Comments on उत्तम पुरुष: चन्द हसीनों को खुतूत...!Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03514753057178092961noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-261243547015665954.post-73423835062077612472012-04-24T13:01:31.941-07:002012-04-24T13:01:31.941-07:00पहले तो मैं अपनी हँसी रोक नहीं पा रहा हूँ कि उस बे...पहले तो मैं अपनी हँसी रोक नहीं पा रहा हूँ कि उस बेचारी हिंदी भाषिनी को कुछ समझ में नहीं आया. विमलेन्दु, सच सच बतलाना, इतने दिनों बाद क्या मन को एक तसल्ली सी नहीं होती है कि अल्लाह ने खैर किया कि उसे यह खत समझ में नहीं आया या अभी भी उसे याद कर के आहें भरते हों...वैसे मुझे दूसरी बात की कोई उम्मीद बर नहीं आती क्योंकि बकौल शायर - "जो हुआ इक बार, वह हर बार हो, ऐसा नहीं होता / हमेशा एक ही से प्यार हो, ऐसा नहीं होता. तो भई, अगर दूसरी बात के सच होने का ज़रा सा भी गुमान हो तो इस दूसरे शेर को सबक मान कर इस पर अमल करें, सारी मुश्किलें दूर हो जाएँगी- 'हर कश्ती का अपना तजरबा होता है दरिया में / सफ़र में हर दफ़ा मंझधार हो, ऐसा नहीं होता'...तो एक नए सफ़र पर निकलिए...ज़माना बदल चुका है, खतो किताबत की न रस्म रही, न फुर्सत...नए ज़माने की कश्ती में सवार हो, आगे बढ़े...खुदा खैर करेगा,, इसका यकीन-ए-कामिल है और नेक ख्वाहिसात और दुआएँ आपके साथ हैं.<br /><br />एक खत मैंने भी लिखा था, कुछ ऐसा ही...पर किसी सचमुच की मोहतरमा को नहीं, बल्कि एक ख्याली मोहतरमा को. वह खत एक लव लेटरराइटिंग कम्पीटिशन के लिए था और पहला इनाम लेकर आया था. आपका यह खत पढ़कर मुझे अपने उस खत की याद आ गई.<br /><br />क्या ज़ुबान लिखी है आपने, नफ़ासत के नशे में चूर...इस पर तो अहले-दिल्ली और अहले लखनऊ भी रश्क करें, अहले बनारस तो करेंगे ही करेंगे...अहले रीवा के बारे में कोई कयास नहीं है. बहुत बहुत मुबारक हो दोस्त, यह खत भी, और इस खत को ना समझ पाने वाली आपकी वह मुहब्बत भी...Sayeed Ayubhttp://gmail.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-261243547015665954.post-21840405314968166562012-04-21T05:30:49.722-07:002012-04-21T05:30:49.722-07:00samajhana itna mushkil to nahin hai, par kabhi kab...samajhana itna mushkil to nahin hai, par kabhi kabhi samajh ke bhi nasamajh hona padta haiOnkarhttps://www.blogger.com/profile/15549012098621516316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-261243547015665954.post-47385184345021171812012-04-20T05:38:37.318-07:002012-04-20T05:38:37.318-07:00अरे नहीं निधि, मैं उनके नाम से तो वाक़िफ था....गड़...अरे नहीं निधि, मैं उनके नाम से तो वाक़िफ था....गड़बड़ ये हुई कि मैने उनके कई नाम रख दिया था.....Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/03514753057178092961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-261243547015665954.post-13493756787428190302012-04-19T22:46:48.052-07:002012-04-19T22:46:48.052-07:00अमां मियाँ..बख्श दीजिए ....
ऐसा मुरासला पढ़ने के बा...अमां मियाँ..बख्श दीजिए ....<br />ऐसा मुरासला पढ़ने के बाद यकीनी तौर पे फरमा रहे हैं कि उन मोहतरमा को अपनी हया से निजात पाकर आपसे कहना पड़ा होगा कि हम दोनों में अकीदत मुमकिन नहीं...आप खुशनुमा माहौल को भी बेरंग बना देते हैं .जाती बातों में...न जाने -जाने कितनों के नाम लेते हैं....अल्ला हाफ़िज़<br />.....मैं उससे निकाह करने जा रही हूँ जो कम से कम मेरे नाम से वाकिफ हो.Nidhihttps://www.blogger.com/profile/07970567336477182703noreply@blogger.com