हम जैसे ही सतना पहुँचे थोड़ा निराश हो गये. ख़बर मिली कि आयोजन में नामवर सिंह और विश्वनाथ त्रिपाठी स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण नहीं आ पाये. जिन लोगों ने नामवर सिंह और विश्वनाथ जी को बोलते सुना है, वो समझ सकते हैं कि इन दोनो वक्ताओं को सुनने का मोह कैसा होता है. इसी लिहाज़ से हमारे लोभ और निराशा का अंदाज़ा भी लगाया जा सकता है. इनके न आने के पीछे जो कारण बताया गया उस पर संदेह करने की कोई गुंजाइश नहीं थी क्योंकि जैसा स्नेह और साथ कमला प्रसाद के साथ इन दोनो का था, तो अगर पाताल में भी यह आयोजन रखा जाता तो नामवर और विश्वनाथ जी ज़रूर पहुँचते. यह आयोजन कमला प्रसाद की प्रथम पुण्यतिथि पर 25 मार्च 2012 को, प्रगतिशील लेखक संघ(प्रलेस) और हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने उनकी जन्मस्थली सतना में किया था.....और कोई यह मानने को तैयार ही नहीं था कि आज कमला प्रसाद हमारे बीच नहीं हैं. शायद इसी भावुकता के चलते संयोजक ने कार्यक्रम की शुरुआत में ही यह घोषणा कर दी कि यह कार्यक्रम हम नहीं कमला प्रसाद ही संचालित कर रहे हैं.
पर निराशा आज छोड़ने को तैयार नहीं थी शायद. कार्यक्रम शुरू होते ही फिर आ धमकी और अंत होते –होते गहरा गई. मुख्य कार्यक्रम को दो सत्रों में बांटा गया था. पहला सत्र, ‘ प्रगतिशीलता की अवधारणा और कमला प्रसाद ‘ पर केन्द्रित करना था, और दूसरे सत्र में संस्मरण होने थे. लेकिन यह शायद इस कार्यक्रम की नियति थी कि दोनों ही सत्र लगभग संस्मरणात्मक हो गये. यद्यपि इसमें कुछ बुरा भी नहीं हुआ. बुरा तो यह हुआ कि पूर्व नियोजित रूपरेखा में अचानक बदलाव कर देने से कार्यक्रम का गठन बिगड़ गया. मसलन, दोनों सत्रों के पूर्व निर्धारित संचालकों और वक्ताओं की अदला-बदली और प्रथम सत्र के विषय में आंशिक किन्तु असुविधाजनक परिवर्तन.....’प्रगतिशीलता की अवधारणा’ की ज़गह ‘प्रगतिशील आंदोलन’ कर देना कोई मामूली बदलाव नहीं था. शायद यह किसी किसी प्रभावशाली वक्ता का आग्रह रहा होगा !
वर्षों तक कमला प्रसाद के प्रिय और अभिन्न सहयोगी रहे कथाकार रमाकान्त श्रीवास्तव ने कमला प्रसाद के निर्माण में उनके परिवार की भूमिका का उल्लेख किया. विशेष तौर पर उनकी पत्नी श्रीमती रामकली पाण्डेय का. रमाकांत जी ने एक बहुत महत्वपूर्ण बात की ओर ध्यान दिलाया कि संगठन और प्रगतिशील आंदोलन के लिए किए गये विराट काम के आगे कमला प्रसाद का रचना संसार चर्चा में पीछे छूट गया है. जबकि मार्क्सवाद, आलोचना और समकालीन विषयों पर दर्जन भर से अधिक महत्वपूर्ण किताबें उन्होने लिखी हैं. उन्होने आग्रह किया कि अब समय आ गया है जब कमला जी के लेखन पर गंभीरता से चर्चा की जाये. कमला प्रसाद में असहमतियां सहने का अपार धैर्य था. कुछ वर्षों से वो प्रगतिशील संगठनों का एक साझा मंच तैयार करने की योजना बना रहे थे, ताकि नव-साम्राज्यवादी ताकतों से मुकाबला किया जा सके.
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अरुण कुमार का मानना था कि कमला प्रसाद भारतीय भाषाओं की प्रगतिशील परंपरा को सामने लाने की कोशिश कर रहे थे. इसी क्रम में उन्होने विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य पर वसुधा के विशेषांक निकालने की योजना बनाई थी. सबको साथ लेकर चलने के कमला प्रसाद के गुण की चर्चा करते हुए उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि प्रलेस ही अब एकमात्र ऐसा संगठन है जो साम्राज्यवाद के खिलाफ सबको साथ लेकर चल सकता है.
भारत में प्रगतिशील आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की याद दिलाते हुए कमला प्रसाद के प्रिय शिष्य आशीष त्रिपाठी ने चिंता जाहिर की, कि कई बार प्रगतिशील शक्तियों की भाषा यथास्थितिवादी और पुनरुत्थानवादी शक्तियों की भाषा से मिलती-जुलती लगती है. एक दौर में CPI के अलोकतांत्रिक दबाव के चलते प्रगतिशील आंदोलन का विघटन हुआ, लेकिन नक्सलवाड़ी आंदोलन के उभार ने प्रगतिशील आंदोलन के पुनर्गठन में मदद की. आशीष का कहना था कि जो लोग आज कमला प्रसाद पर नकारात्मक टिप्पणियाँ कर रहे हैं, उन्हें पहले आत्मावलोकन करना चाहिए. अभिनव कदम के संपादक जयप्रकाश धूमकेतु ने भी इस सर्वमान्य सत्य को कहा कि कमला प्रसाद हमेशा नये रचनाकारों को आगे बढ़ाते रहे और उन पर विश्वास करते रहे. कुछ और वक्ताओं के वक्तव्यों के साथ पहला सत्र समाप्त हुआ. कुल मिलाकर यह सत्र ठीक-ठाक ही गया पर यह खलिश रह ही गई कि काश इस सत्र में काशीनाथ सिंह, महेश कटारे, दिनेश कुशवाह आदि को भी सुन पाते. इसकी कसक भोजनावकाश के समय थोड़ी कम ज़रूर हो गयी जब सबने अपने प्रिय लेखकों से अनौपचारिक मेल-मिलाप किया.
रात में कवि-गोष्ठी के साथ ही आयोजनो के लिए विख्यात पुरोधा कमला प्रसाद की पहली पुण्यतिथि पर कार्यक्रम सम्पन्न हुआ. इसमें यह चर्चा भी हुई कि जल्द ही देश को एक दूसरे कमला प्रसाद की खोज कर लेनी पड़ेगी.......पर क्या यह इतना आसान है ?????
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( यह रिपोर्ट वीना बुन्देला के सहयोग से तैयार की गई.)