30 अप्रैल 1945 को हिटलर ने आत्महत्या कर ली थी. इतिहास के पन्नों पर जो लिखा हुआ है, उसके मुताबिक तो दूसरे विश्वयुद्ध में अपनी सेना की डावांडोल स्थिति ने उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित किया. पर अनुभव कहते हैं कि आत्महत्या जैसी प्रव़त्तियों के पीछे जो कारण होते हैं वो इतने स्थूल नहीं होते. हो सकता है आगे इस लेख में हम उन सूक्ष्म कारणों को पकड़ पाने में कुछ कामयाब हो जायें !
बहरहाल, दुनिया भर में हिटलर अब व्यक्ति नहीं एक मुहावरा बन गया है. हिटलर अब एक प्रवृत्ति का नाम है. यह व्यक्तिवाचक संज्ञा से तब्दील होकर भाववाचक संज्ञा बन गया है. हिटलर का मतलब अब जातीय दम्भ, रक्त आधारित श्रेष्ठता का अहंकार, दुर्निवार ज़िद, और अपनी ज़िद को पूरा करने के लिए सभी सामाजिक-नैतिक तटबन्धों को तोड़ देना हो गया है. इस लिहाज से आज की दुनिया में हम सभी के भीतर कुछ अंशों में हिटलर मौजूद है. और हर नये जन्म लेने वाले बच्चे के साथ थोड़ा सा हिटलर भी पैदा हो रहा है. हिटलर एक बार आत्महत्या करता है, और अनन्त बार जन्म लेता है.
आप जानते हैं कि हिटलर एक बहुत उम्दा चित्रकार था. बचपन से ही उसकी ख़्वाहिश एक बड़ा कलाकार बनने की थी. लेकिन वह हिटलर बन गया..दुनिया का क्रूरतम तानाशाह ! द्वितीय विश्वयुद्ध का ज़िम्मेदार माना जाने वाला यह फासीवादी नेता आज भी अपने ख़ौफ़, तानाशाही और क्रूरता के लिए हमारे ज़हन में जिन्दा है. दुनिया भर में हिटलर की आत्मकथा Mein Kampf सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में एक है. यह एक विडम्बना भरी सच्चाई है कि हिटलर का चरित्र युवाओं को रोमांचित करता है. इसके पीछे क्या मनोविज्ञान हो सकता है ? कहीं यह डार्विन के Survival Of The Fittest का पुनर्जन्म तो नहीं ? आज की दुनिया के किन्हीं भी समाजों में क्या हिटलर के प्रति सहानुभूति की यह प्रवृति उपयोगी हो सकती है ??
हिटलर 13 साल का था जब उसके पिता गुज़र गये. कहते हैं कि बड़े कड़क मिज़ाज़ पिता थे. कई बार हिटलर को उनसे पिटना भी पड़ता था क्योंकि वह भी कम गर्म मिज़ाज़ नहीं था. जब वह पिटता तो माँ उसे बचाती. माँ से उसे बहुत लगाव था. वह माँ की तस्वीर हमेशा अपने पास रखता था. पढ़ाई और स्कूल जाने में निहायत ही सुस्त था. सभी विषयों में असंतोषजनक अंक मिलते थे, लेकिन जिमनास्टिक और आर्ट्स में विशेषयोग्यता पाता था. जब उसने अपने पिता को बताया था कि वह कलाकार बनना चाहता है तो पिता चिन्तित हो गये थे. अचानक पिता की मृत्यु से उसे बिना कोई डिग्री लिए ही स्कूल छोड़ना पड़ा. वह अपनी आलसी की क्षवि से बहुत सशंकित भी रहता था. इसीलिए जब उसने अपना राजनैतिक सफर और दर्शन शुरू किया तो उसने अपने पहचान वाले विरोधियों का मुह जल्दी से जल्दी बन्द करने की कोशिश की.
स्कूल छोड़ने के बाद हिटलर वियेना चला गया.वहाँ उसने एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स में दाखिले के लिए आवेदन किया. लेकिन उसका आवेदन यह कहकर खारिज़ कर दिया गया कि उसके पास स्कूल छोड़ने का प्रमाण-पत्र नहीं है, जबकि उसकी कलाकृतियाँ उसके क्षमता को चीख-चीख कर बता रही थीं. बहुत सारे लोगों का यह मानना है कि हिटलर बहुत भावुक और रचनात्मक था. उसकी भावनाओं को कुचलने की जो शुरुआत उसके पिता ने कर दी थी वह आगे भी चलती रही, और उसकी कोमलता को कुचलने का ही भयंकर परिणाम दुनिया ने देखा.
18 वर्ष की उम्र में उसकी माँ भी गुज़र गईं. कुछ चश्मदीद लोगों ने लिखा है कि वह डेथ-बेड पर पड़ी माँ के स्केच बनाया करता था. यह वो समय था जब उसके मन में यहूदियों के प्रति एक घृणा बनने लगी थी. उसकी माँ का असफल इलाज़ करने वाला डॉक्टर यहूदी था और वह प्रोफेसर भी यहूदी था जिसने उसकी ड्रॉइन्ग को अस्वीकार करते हुए आर्ट्स एकेडमी में दाखिला नहीं दिया था. यह करीब 1908 का समय था. वह पोस्ट कार्ड्स पर चित्र बनाकर वियेना की सड़कों पर ग्राहकों की तलाश करता था. वियेना के ज़्यादातर रईस यहूदी थे. उनकी उपेक्षा से 1910 तक आते-आते वह यहूदी विरोधी बन चुका था. उसे अपने जर्मन होने पर बहुत गर्व था. यह बात खुद हिटलर ने स्वीकारी है कि वियेना में गुजारे गये पांच साल बहुत विपत्ति और उपेक्षा भरे रहे हैं, और वही उसके भीतर नफरत के बीज पड़े हैं.
इस बीच उसने सेना में भर्ती होने का प्रयास भी किया लेकिन मेडिकल परीक्षण में असफल हो गया.1918 में हिटलर ने नाज़ी दल की स्थापनाकी. इस दल का उद्देशय साम्यवादियों और यहूदियों से अधिकार वापस लेना था. हिटलर और उसके साथियों का मानना था कि प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार के लिए यहूदी ही दोषी हैं. हिटलर ज़बरदस्त वक्ता था. उसके भाषणों से प्रभावित होकर जर्मन लोग उसके दल में शामिल होने लगे. 1922 तक आते-आते वह जर्मनी का बहुत प्रभावशाली नेता बन चुका था. सरकार का तख्तापलट के प्रयास में 1923 में उसे एक साल की जेल की सज़ा भी मिली. इस सज़ा ने उसके कद को और बढ़ा दिया. 1933 में वह चांसलर बना और संसद को भंग कर दिया. अगले ही साल उसने खुद को सर्वोच्च न्यायाधीश घोषित कर दिया और जर्मनी का राष्ट्रपति बन गया. 1933 से 1938 के बीच उसने लाखों यहूदियों का कत्ल करवाया. इस बीच बह जर्मन सेना की शक्ति बढ़ाता रहा. उसने आस्ट्रिया और चेकोस्लोवाकिया पर कब्ज़ा करने के बाद जब पोलैण्ड पर कब्ज़ा करने के लिए अपनी सेनाएं भेजीं तब ब्रिटेन ने भी उसके मुकाबले अपनी सेना उतार दी. यहीं से दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ. हिटलर ने अपनी स्थिति कमज़ोर होती देख, इटली के तानाशाह मुसोलिनी से सन्धि की. लेकिन जब अमेरिका भी युद्ध में कूद पड़ा तब हिटलर को पीछे लौटने को मज़बूर होना पड़ा. कहा जाता है कि इसी अवसाद में उसने आत्महत्या कर ली.
हिटलर ने अपनी जातीय श्रेष्ठता के आग्रह के चलते जहाँ पूरी दुनिया को विनाश के मुहाने पर खड़ा कर दिया था. . हिटलर अपने व्यक्तित्व की समस्त संश्लिष्टताओं के बावजूद अपनी अभिव्यक्ति में एकदम स्पष्ट था. हिटलर अपनी अतःप्रज्ञा से निर्णय लेता था. हिटलर की अंतःप्रज्ञा का निर्माण उसकी वंशगत-श्रेष्ठताबोध से हुआ था. वह कहता भी था, “ शुद्ध रक्त वाला व्यक्ति मुश्किल पड़ने पर व्यावहारिक तथा सुसंगत निर्णय लेने में सक्षम होता है. इसके विपरीत मिश्रित रक्त वाला परिस्थितियों को देखते ही घबरा जाता है. दूषित रक्त वाला व्यक्ति शुद्ध रक्त वाले प्राणी से निम्न तो होता ही है. साथ ही वह पतनोन्मुख भी शीघ्रता से होता है.”…....... “ राज्य को यह तय कर देना चाहिए कि स्वस्थ्य दम्पति को ही सन्तानोत्पत्ति का अधिकार है, तथा उनमें बीमार अथवा वंशानुगत दोष होने पर प्रजनन न करना अति सम्माननीय होगा....ऐसे लोगों को प्रजनन के अयोग्य घोषित कर सभी व्यावहारिक गतिविधियों को तीव्र करना होगा.”
हिटलर के निर्माण में उसके यौन-जीवन संबन्धी आग्रहों का भी महत्वपूर्ण योग है. कुछ इतिहासकारों ने तो यह तक खोज लिया था किहिटलर होमोसेक्सुअल था. उसके स्वभाव पर इसी ग्रंथि का असर था. वह सोलह साल तक इवा ब्राउन नामक युवती के साथ रहा, उसे प्रेम किया. मरने के कुछ समय पहले उसने इवा से विवाह किया. अंत में दोनो ने एक साथ आत्महत्या कर ली. इसके पहले उसकी और दो प्रेमिकाओं ने आत्महत्या का प्रयास किया था. उनमें से एक मारिया रीटर तो बच गई थी लेकिन इंडा ले हिटलर की उपेक्षा में जी नहीं सकी. उसके साथ काम करने वाले लोगों ने बताया था कि हिटलर और इवा कभी भी साथ में रात नहीं बिताते थे. कुछ लोगों ने तो हिटलर को बाकायदानपुंसक ही घोषित कर दिया था. और उसकी क्रूरता की वज़ह इसे ही माना था. इन बातों की सच्चाई संदिग्ध है फिर भी विवाह-दाम्पत्य और संतानोत्पत्ति के हिटलर के आग्रह सहज और मानवीय नहीं रहे हैं.
यद्यपि उसकी मान्यताएँ जातिगत श्रेष्ठता और धार्मिक विद्वेष पर आधारित थी. ब्रह्मचर्य का प्रबल समर्थक हिटलर इसलिए था कि उसके राष्ट्रवादी अभियान को सफल बनाने वाले बलिष्ट और एकाग्र युवा उसे मिल सकें. जैसे गांधी अपने नस्लभेद-विरोधी और स्वतंत्रता आंदोलन के लिए ' आत्मबल से युक्त ' सहयोगी ब्रह्मचर्य के मार्फत तैयार करना चाह रहे थे.
हिटलर की दाम्पत्य और यौन-जीवन सम्बन्धी मान्यताओं ने स्त्री और प्रेम को समाज में दोयम दर्जे पर स्थापित करने के प्रयासों को बल दिया.
कुछ बातें तो शायद स्पष्ट हो पा रही हैं कि व्यक्ति की जन्मजात और स्वाभाविक प्रवृत्तियों का दमन बहुत घातक परिणाम देता है. व्यक्तित्व के निर्माण में जितना योग परिवेश का होता है, उससे कहीं अधिक इन सहजात गुणों का होता है. ये गुण अनुवांशिक और प्राकृतिक रूप से बच्चे में आते हैं. इन सहजात गुणों को जब अनुकूल परिवेश मिल जाता है तो एक रचनात्मक व्यक्तित्व सामने आता है. इसके उलट अगर इनमें प्रतिकूल संबन्ध हुए तो या तो विध्वंशक व्यक्तित्व बनते हैं या फिर निरर्थक. दूसरी बात यह कि रचनात्मकता की उपेक्षा कई बार क्रूर मनोवृत्तियों में बदल जाती है. आप कभी ध्यान से देखें तो पायेंगे कि दुनिया के जितने भी दुर्दान्त अपराधी हुए हैं सब बहुत प्रतिभाशाली थे. किसी न किसी कला के बीज उनमें भी आपको ज़रूर मिलेंगे. किसी न किसी रूप में इन बीजों की दमन ज़रूर हुआ होगा कि हिटलर जैसे लोग बने.
(सभी पेन्टिंग्स हिटलर द्वारा बनाई हुई )
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