नहीं दोस्तों !
यह कोई कविता नहीं है, न कोई कहानी. यह कविता नहीं जैसी कविता, और कहानी नहीं जैसी
कहानी के दरम्यान की एक ज़गह है. एक वाकया है जो आज ही गुज़रा है मेरे साथ भरी
दुपहरी में. अमूमन दोपहर में सोने की आदत मेरी नहीं है. मेरी नौकरी ही ऐसी है कि
यह आदत बनने ही नहीं पायी. पर कभी-कभार जब छुट्टी होती है तो मैं भी इस सुख को
लेने से नहीं चूकता.
आज भी मैं दोपहर को इस खुशकिस्मत नीद
में लीन था और कोई सपना देख रहा था. मज़े की बात ये कि सपना देखते हुए मुझे यह भी
ख़याल बीच-बीच में आ-जा रहा था कि ज़्यादा सोना नहीं है, क्योंकि सोने की आदत पड़
जायेगी और दूसरा ये कि आदत न होने से शाम को उठो तो अजीब सी सुस्ती और बदहज़मी
तारी रहती है.
इन्हीं ख़यालों के बीच अचानक कॉलबेल
बजी. घर की व्यवस्था कुछ ऐसी है कि घर के बैठक वाले कमरे में ही मैं पढ़ता-लिखता
और सोता हूँ. दो-तीन बार बेल बजी तो मेरी नींद टूटी. मैने उठने की कोशिश की तो लगा
कि हाथ-पैर में जान ही नहीं है. खैर किसी तरह अधलेटे ही खिसक-खिसक कर दरवाज़े की
कुंडी खोली. कुंडी खोलने की खटाक् को आगंतुकों ने सुना....और धीरे से दरवाज़े को
ठेलकर अंदर आने लगे. मैने देखा कि कोई सपरिवार आया है. कुछ स्त्रियां, बच्चे और दो
पुरुष हैं. आँखें ठीक से खुली न होने के कारण मैं उन्हें ठीक से पहचान नहीं पाया
अचानक. बस मेरे मुह से इतना निकला—आ
जाइए अंदर ! मुझे लगा कि वो सब
बड़े अधिकार भाव से अन्दर आ गये थे. स्त्रियां और बच्चे के कमरे में चले गये. दोनो
पुरुष बैठक में ही सोफे पर बैठ गये. ये दोनो लोग आपस में कुछ बात करते हुए ही
अन्दर घुसे थे और बैठने के बाद भी उसी रौ में अपनी बात में मशगूल थे—ऐसे जैसे इन्होने मेरी तरफ ध्यान नहीं
दिया हो. इससे मुझे मौका मिल गया कि मैं अपने होश-हवास दुरुस्त करके व्यवस्थित हो
जाऊँ.
मैं अभी तक अधलेटा ही था. मैने कुहनी
टिकाकर उठना चाहा तो धड़ाम से गिर गया, बिस्तर में ही. आँखें खोलकर देखना चाहा कि
कि कौन आये हैं तो कमरे में कोई दिखा नहीं ! आँख
बड़ी मुश्किल से खुल रही थी. दुसरी बार कोशिश की. इस बार कमरे के दूसरे कोने पर
रखे सोफे की तरफ देखा.....वह भी खाली !! इस
बीच उनके बात करने की आवाज़ लगातार आती रही. इतना तो लग रहा था कि हैं दोनो लोग
इसी कमरे में, क्योंकि अन्दर के कमरे से बाकी लोगों की आवाज़ें भी आ रही थीं.
आवाज़ की तेज़ी में इतना अंतर तो था ही कि कोई भी अन्दाज़ा लगा ले कि आवाज़ें कहाँ
से आ रही हैं. यह भी समझ में आ रहा था कि जब मैं उठने और देखने की कोशिश कर रहा था
तो वे दोनो बात को अल्प-विराम देकर मेरी इस कोशिश को देखने लगते थे. मुझे यह भी
सुनाई पड़ा कि वो कह रहे हैं—अभी
गहरी नींद में थे इसीलिए उठ नहीं पा रहे हैं. इस बीच मुझे उनकी आवाज़ों से यह भी
अंदाज़ा हुआ कि दोनो में से एक मेरे जीजा जी हैं.
मैने तीसरी बार उठने की कोशिश की और फिर
धड़ाम् ! पड़े-पड़े ही कमरे के
तीसरे संभावित कोण पर नज़र डाली. वहाँ भी कोई नहीं. अब मुझे शर्म भी आ रही थी. और
यह डर भी लगने लगा था कि मैं कहीं किसी गंभीर नशे के आगोश में न समझ लिया जाऊँ ! इस बीच अम्मा भीतर से आयीं. उन्होने
जीजा जी के पैर छुए. उन लोगों को मेरे बावत् बताया कि आज भैया घर में रह गये तो ये
भी सो गये, वैसे दोपहर में सोते नहीं हैं. पर मुझे अब भी कोई नहीं दिख रहा था.
अम्मा भी नहीं ! उठने की कोशिश कर रहा
था तो गिर जा रहा था. हार कर मैने कोशिश
करना छोड़ दिया. और मन में सोच लिया कि अब इस ज़िल्लत को स्वीकार ही कर लेना है.
फिर में निश्चेष्ट लेटा ही रहा कि थोड़ी देर में सारे अंग खुद ही जाग्रत हो
जायेंगे. बीच-बीच में ताकत लगाकर आँख खोलने की कोशिश करता. उन लोगों का चाय-पानी
चल रहा था. पर मुझे दिख कुछ नहीं रहा था. सिर्फ ध्वनियाँ थीं.......थोड़ी देर में
वे सब जाने लगे. मैं पड़ा रहा....वो चले गये !
उनके जाने के बाद मैने सुना कि अम्मा कह
रही हैं कि वाह रे भैया ! कोई
आ जाये तो तुम उठ भी नहीं सकते ! क्या
सोचा होगा उन्होंने !! मैने
कुछ जवाब नहीं दिया. यूँ ही लेटा रहा अपनी लाचारी के साथ........कि अचानक मोबाइल
बज उठा.......मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा........आसपास देखा तो कहीं कोई नहीं ! मेरी
आँखें भी ठीक-ठाक देख रही थीं, भले ही थोड़े भारीपन के साथ. दरवाजे खिड़कियां सब
बन्द...अन्दर सबके सोये हुए होने का सन्नाटा......मैने मोबाइल उठाया. नम्बर भर आ
रहा था उसमे......मतलब नाम से फीड नहीं था. रिसीव करते ही मैने फोन करने वाले की
आवाज़ पहचान ली, जबकि इसके पहले उनसे कभी फोन पर बात नहीं हुई थी. लगभग दस मिनट तक
उनसे बात करता रहा.
बात करते-करते ही समझ में आ गया था कि
अभी-अभी जो हुआ था वह एक सपना था.......मैं सपने में जागना देख रहा था..........मैं
सपने में जागा हुआ नहीं, बल्कि जागता हुआ था.......सपने में जागना, सचमुच का जागना
नहीं होता........सपने में जागे हुए लोग गिरते हैं धड़ाम् से.......सपने में जागे
हुए लोग कहीं नहीं पहुँचते, सिवाय एक और नींद के !!
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