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Saturday, 20 April 2013

'क' और 'ख' की लघुकथा



जिन दिनों '' प्रेम कविताएँ लिख रहा था,
उन दिनों '' प्रेम में डूबा जा रहा था ।

अब '' बहुत मशहूर हो चुका है ।
प्रेम कविताओं से एक पत्नी हुई....
पत्नी से दो बच्चे हुए.......
बीमार पिता शिखर-सम्मान से सम्मानित हुए.......
माता शुगर-थायराइड-माइग्रेन के साथ मुदित हुईं.......
भाई नौकरीशुदा हुए....................

इधर '' प्रेम में डूब गया था ।

उसे भी दो सलोने बच्चे हो सकते थे, अगर एक अदद पत्नी होती ।
बीमार पिता दिवंगत हो गए थे........
और माता कुपित थीं........
भाई कहीं गुमशुदा हो गए थे.......

कई साल बाद '' और '' की मुलाकात हुई.....
तो दोनो मुस्कुराए....।

Friday, 19 April 2013

लघुकथाः "परस्पर"




उसने कहाः  मैं सोचती हूँ कि दुनिया में तमाम लोगों के लिए दुनियादारी निभाने के लिए
               कुछ न कुछ करना पड़ता है, पर तुम्हारी तरफ से निश्चिन्त रहती हूँ
               कि तुम्हारे लिए कुछ न भी करूँ तो कोई हर्ज़ नहीं !

इसने कहाः और मैं सोचता हूँ कि दुनिया के तमाम लोगों की चिन्ता तुम्हें रहती है. 
               लेकिन मेरा--जो तुम्हें सबसे अधिक प्यारा है--ही खयाल रखने में तुम लापरवाही क्यों
               करती हो !!

Saturday, 6 April 2013

घर संसार में घुसते ही

(मेरे प्रिय कवि विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता.....)


घर संसार में घुसते ही
पहिचान बतानी होती है
उसकी आहट सुन
पत्नी बच्चे पूछेंगे ' कौन है ?'
'मैं हूँ ' वह कहता है
तब दरवाजा खुलता है ।

घर उसका शिविर है
जहाँ घायल होकर वह लौटता है ।

रबर की चप्पल को
छेद कर कोई जूते का खीला उसका तलुआ छेद गया है ।
पैर में पट्टी बाँध सुस्ताकर कुछ खाकर
दूसरे दिन अपने घर का पूरा दरवाजा खोलकर
वह बाहर निकला

अखिल संसार में उसकी आहट हुई
दबे पाँव नहीं
खाँसा और कराहा
' कौन है '  यह किसी नें नहीं पूछा
सड़क के कुत्ते ने पहिचानकर पूँछ हिलायी
किराने वाला उसे देखकर मुस्कुराया
मुस्कुराया तो वह भी ।
एक पान के ठेले के सामने
कुछ ज्यादा
देर खड़े होकर
उधारपान माँगा
और पान खाते हुए
कुछ देर खड़े होकर
फिर कुछ ज्यादा देर खड़े होकर
परास्त हो गया !