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Tuesday 17 May 2011

बुद्धम् शरणम् गच्छामि..!

आज बुद्ध जयन्ती है...बुद्ध आप्त-पुरुष माने जाते हैं...यानी जिनके कहे पर कोई सवाल न उठाया जाय..!..हालांकि सवाल तो उनके रहते ही, उनके ही शिष्यों ने उठाने शुरू कर दिये थे, लेकिन ये दीगर बात है. यहाँ मुख्य अभिप्रेत ये है कि आज हमारी जीवन शैली क्या हमें इतनी गुंजाइश देती है कि हम ज़रा सा रुककर अपने महापुरुषों की बातों को याद कर पायें...उन्हें जीवन में उतारनें की बात तो बाद की है...?
दूसरी बात ये कि हमारे देश में महापुरुषों के जातिकरण का चलन चल निकला है. बुद्ध का भी अपहरण एक खास वर्ग ने कर लिया है...और मज़े का अंतर्विरोध देखिये, कि जो बुद्ध आस्था और मूर्ति-पूजा का विरोध करते थे ,उनके अपहर्ताओं ने न सिर्फ उनकी मूर्तियां बनवायीं बल्कि उनकी आड़ में अपनी,अपने आकाओं, हाथी-घोड़ों तक की मूर्तियों से देश को पाट दिया.....प्रासंगिकता का क्या यही उत्तर आधुनिक अर्थ है...?????

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