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Wednesday 15 January 2014

क्या करें कि न करें !

चार्ल्स डार्विन ने अपनी आत्मकथा में एक ऐसी महत्वपूर्ण बात कही है, जो आज भारत के तथाकथित राजनीतिक बदलाव के संदर्भ में सामयिक ठहरती है । 

डार्विन कहते हैं--" मुझे इसमें संदेह है कि मानवता किसी व्यक्ति की प्राकृतिक अथवा अपनी आंतरिक विशेषता होती है ।"

स्पष्ट तौर पर डार्विन कहना चाहते हैं कि हम मानवता नामक गुण को अपनी ज़रूरत और परिस्थिति के मुताबिक धारण करते हैं । ज़रूरत के मुताबिक ही यह गुण हमारे भीतर स्थायी बन सकता है और इसका विस्तार अपने से आगे परिवार,समाज,देश और दुनिया के लिए हो सकता है।

अब इस अवधारणा की रौशनी में 'आप' की मानवतावादी राजनीति को देखिए । 'आप' की टीम के सदस्यों के बारे में क्या यह दावे के साथ कोई कह सकता है कि अपने 'अंतस' में वे सब इतने ही ईमानदार और मानवतावादी होंगे ? और पार्टी की सदस्यता लेने वाले देश के लाखों लोगों के बारे में तो ऐसा सोचना भी अपनी मूढ़ता सिद्ध करना होगा । अपने आस-पास के 'आप' कार्यकर्ताओं को देखकर हम इसकी पुष्टि कर सकते हैं ।

निश्चित तौर पर देश की राजनीति की आत्मा और शरीर, दोनो को बदलने की ज़रूरत है। और केजरीवाल ने अपनी टीम के साथ इस बड़े काम के लिए 'ईमानदारी' और 'मानवता' को धारण किया है। इस बड़े विज़न को हम नागरिक अगर देख पा रहे हों, तो हमें 'टीम केजरीवाल' के इन अर्जित गुणों को स्वीकृति और सहयोग देना चाहिए। इस समय इनकी निजी और पिछली ज़िन्दगी पर सवाल खड़े करना उसी राजनीति को मजबूत करेगा, जिससे हम छुटकारा पाना चाहते हैं।

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