Pages

Saturday 14 April 2012

गीतों भरी कहानी : 'उम्मीद होगी कोई'


( आकाशवाणी में काम करते हुए वर्षों पहले युववाणी के लिए एक  गीतों भरी कहानी लिखी थी.पुरानी फाइलें देखते हुए अचानक मिल गई तो लगा कि इसे दोस्तों के साथ शेयर किया जाये. दिमाग की खिड़कियाँ बन्द कर और दिल का दरवाजा खोलकर इसे पढ़ेंगे/सुनेंगे तो मज़ा आ सकता है)


       विश्वविद्यालय में यह नये सत्र का पहला दिन था,और यह हिन्दी की पहली क्लास थी. इस पहले दिन और पहली क्लास में दूसरी लाइन में बायें से तीसरी कुर्सी पर घुँघराले बाल और गेहुँए रंग वाला यह छात्र दिनकर था. और सबसे आगे वाली लाइन में दायें से चौथी कुर्सी पर बैठी, लम्बे बाल, काली आँखें और गोरे चेहरे वाली लड़की शुभांगी थी. दोनों का ही विश्वविद्यालय में यह पहला दिन था. क्लास में ये दोनों लगातार कुछ हैरानी से तब से एक दूसरे को देखे जा रहे थे, जब प्रो. साहब ने परिचय के बहाने सबका नाम पूछा था. छात्र ने सुना शुभांगी....छात्रा ने सुना दिनकर !  और फिर इन दो ध्वनियों के अलावा सारी ध्वनियाँ खो गई थीं. इस सन्नाटे में दोनो ही अतीत की कोई छूटी हुई डोर का अपना-अपना सिरा फिर से पकड़ने लगे.
       इस डोर को पकड़े-पकड़े ही दोनो क्लासरूम से बाहर आये. बड़ी कशमकश और संकोच के साथ छात्र दिनकर, छात्रा शुभांगी के पास आकर कहता है—“ हैलो शुभांगी जी ! मैं दिनकर शर्मा हूँ. क्या आप कभी सरस्वती स्कूल में पढ़ती थीं ? “ शुभांगी मुस्कुरा कर जवाब देती है—“ तुम बड़े भुलक्कड़ हो, इतनी जल्दी भूल गये कि हम दोनों ने दसवीं तक एक साथ पढ़ाई की थी. कैसे हो दिनकर ? इतने दिनों बाद तुमसे मिलकर बहुत भला लग रहा है.” थोड़ी देर तक यूँ ही कहने सुनने के बाद दोनों अपने घर चले गए. दोनो की ही आँखों में स्कूल के पुराने दिन लौट आये थे..........
       पहली कक्षा से ही दिनकर और शुभांगी एक साथ पढ़ रहे थे. एक दूसरे का टिफिन छुड़ाकर खाने, किताब कॉपियां छुपाकर परेशान करने जैसी छोटी-छोटी शरारतों के बीच दोनो किशोर हो गये तो हया का एक झीना सा परदा उन दोनो के बीच खिंचने लगा. बातें वे अब भी करते थे...दिनकर को अब भी शुभांगी अपना टिफिन खिलाती थी, लेकिन अब औरों से नज़रें चुराकर....कुछ था जो दोनों को इतना खीँच रहा था कि उसकी शिकन हवाओं के चेहरे पर खुशबू की तरह दिखती थी..........

             ( हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू....)

       दिनकर और शुभांगी का मिलना जुलना और बातें करना लगातार बना रहा. दिनकर शुभांगी के घर भी आने-जाने लगा था, फर्क इतना था कि अब बहाने ढूढ़े जाने लगे थे मिलने के. मसलन, शुभांगी दिनकर से उसकी नोटबुक मागकर ले जाती, और फिर उसे लेने के लिए दिनकर उसके घर जाता. इस तरह कुछ अनकहा सा पलता रहा उनके बीच चुपचाप. उनकी अपनी अलग दुनिया बसती जा रही थी.
       अप्रैल का महीना आ गया था. दसवीं की परीक्षाएँ शुरू हुईं तो दोनो पढ़ाई में व्यस्त हो गए. परीक्ष3 के दरम्यान थोड़ी बहुत बातें और मिलना होता रहा. परीक्षा खत्म हो गयी और दो महीने के लिए स्कूल बन्द. इस छुट्टी में शुभांगी अपने दादा-दादी के पास चली गई और दिनकर ने खुद को दोस्तों के साथ व्यस्त रखा.
       गर्मी के बाद बारिश आई. बारिश में भीगी हुई हवा आई लेकिन शुभांगी नहीं आई.दिनकर बेचैन हुआ. कुछ दिन बाद पता चला कि शुभांगी स्कूल छोड़ गई है. उसके पापा का ट्रांसफर कहीं और हो गया है. कहाँ ? ये पता नहीं ! दिनकर का जैसे सब कुछ चला गया. अभी तो सारा आसमान उसका था. हवा उसके रुख के साथ बहती थी. वो जब खिलता था तो फूल महक उठते थे. अब वीरान हो गई थी उसकी दुनिया.........

            (  खो गया है मेरा प्यार....................)

        कुछ दिनों की घनी उदासी के बाद धीरे-धीरे सब सामान्य होता गया. शुभांगी की याद उसके मन में स्थायी भाव बन गई थी लेकिन बाद के दिनों में वह उसे याद करके ज़्यादा दुखी नहीं होता था. एक गहरी सांस लेकर आसमान की तरफ देखता था और अपने काम में जुट जाता था.दो साल और स्कूल में बिताने के बाद. कॉलेज से बी.ए. किया और अब विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. कर रहा है. कहते हैं कि गुज़रा हुआ वक्त लौटकर नहीं आता लेकिन गुज़रे हुए वक्त के मुसाफिर कभी किसी मोड़ पर टकरा जाते हैं. शुभांगी को फिर से  पाकर दिनकर को लगा कि जैसे उसकी खोयी हुई दुनिया मिल गयी हो........

             ( तुम जो मिल गये हो.................)
                    http://www.youtube.com/watch?v=7dPmLZa82xY

       विश्वविद्यालय में दोनों मिलते तो खूब बातें करते. दिनकर बार बार गुज़रे वक्त में जाता और शुभांगी उसे खींचकर लौटा लाती. दिनकर स्कूल के दिनों की उन कड़ियों को फिर से जोड़ना चाहता था क्योंकि शुभांगी की अनुपस्थिति में भी उसका एहसास दिनकर के साथ था. दोनों ही अब युवा हो गए थे. दिनकर शुभांगी से खूब बातें करता लेकिन अपने प्रेम को किसी निर्णय की तरह उसके सामने कह देने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. इस न कह पाने के कारण अब वह उदास रहने लगा था.................

             ( जब भी ये दिल उदास होता है.........)
                    http://www.youtube.com/watch?v=sCl1YwWmp6s

        दिनकर की उदासी लगातार बढ़ती गई. अब वह बीमार सा दिखने लगा. शुभांगी के साथ रहता लेकिन कुछ बात न करता. उसकी ऐसी हालत देख कर शुभांगी परेशान होने लगी. एक दिन शुभांगी ने कहा--“ दिनकर क्लास के बाद रुकना, कुछ ज़रूरी बातें करेंगे”.
             क्लास खत्म होने के बाद दोनो लॉन में गये. वहाँ इस वक्त और कोई नहीं था. शुभांगी ने बैग से चॉकलेट निकालकर दिनकर की तरफ बढ़ाया. स्कूल के दिनों में कोई शुभांगी के बैग से अक्सर चॉकलेट गायब कर देता था. लेकिन आज दिनकर ने बड़े अनमने ढंग से चॉकलेट लिया था. शुभांगी ने कहा—“दिनकर कई दिनों से तुम उदास रहते हो. बात भी कम करते हो. अगर मुझ पर भरोसा हो तो अपनी परेशानी मुझसे कहो.शायद कोई रास्ता निकाला जा सके.”
        कुछ देर तक चुप रहने के बाद उसने कहा—“तुम बुरा न मानों तो एक बात पूछूँ ?” शुभांगी ने सिर हिलाकर हाँ कहा.
काफी कोशिश करने के बाद लड़खड़ाती आवाज़ में दिनकर बोल पाया—“मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ”

शुभांगी हँसने लगी, और हसते हुए ही बोली—“ तो क्या मुझे एक और शादी करनी पड़गी !!”

  •  

6 comments:

Tulika Sharma said...

अब तक जाने कितनी गीतों भरी कहानियां युववाणी के लिये रिकॉर्ड कर बजायी हैं ...मगर ये बहुत परिपक्व है ...गीतों का चयन भी बहुत अच्छा है .....ग्रेड देती तो बी + मिलता :)

Tulika Sharma said...

ब तक जाने कितनी गीतों भरी कहानियां युववाणी के लिये रिकॉर्ड कर बजायी हैं ...मगर ये बहुत परिपक्व है ...गीतों का चयन भी बहुत अच्छा है .....ग्रेड देती तो बी + मिलता :)

Tulika Sharma said...

ब तक जाने कितनी गीतों भरी कहानियां युववाणी के लिये रिकॉर्ड कर बजायी हैं ...मगर ये बहुत परिपक्व है ...गीतों का चयन भी बहुत अच्छा है .....ग्रेड देती तो बी + मिलता :)

Manish Kumar said...

गीतों भरी कहानी के वे दिन याद हैं। आज कल फिर नीलेश मिश्रा बिग एफ एम पर इस रवायत को याद शहर के माध्यम से पुनर्जीवित कर रहे हैं। आपके इस संकलन का प्रथम और आखिरी गीत मेरा भी पसंदिदा रहा है।

nirupma said...

गीतों भरी कहानियाँ हमेशा से ही पसंद रहा ...भावों को पूर्णता मिलती है ..कहानी अपने आप में हृदयस्पर्शी है ..हमें एक उम्मींद है कि जैसे इसकी प्रस्तुति आकाशवाणी में आपकी आवाज़ और गीतों के साथ हुई होगी वैसे ही शीघ्र सुनने को मिल जायेगी ...

Unknown said...

शु्क्रिया दोस्तों, हमारे घर में आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए.