तुम पृथ्वी हो जाओ
घूमता रहूँ अपनी कक्षा में.
तुम तितली हो जाओ
तो मैं खिला करूँ फूल बन कर.
तुम नदी हो जाओ
तो एक चट्टान की तरह
रास्ते में पड़ा
धीर धीरे कटता रहूँ तुम्हारी धार से.
तुम सूरज की तरह निकलो
तो मैं बर्फ होकर
पिघलता रहूँ तुम्हारी आँच से.
तुम आग हो जाओ
तो मैं
सूखी लकड़ी होकर इकट्ठा हो जाता हूँ.
तुम गौरैया बन जाओ
तो मैं
आँगन में दाना होकर बिखर जाता हूँ.
इच्छाओं के इस अनन्त से
अन्ततः मैं तुम्हें मुक्त करना चाहता हूँ..
यही मेरा आज का राजनैतिक बयान है.
No comments:
Post a Comment