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Saturday 28 May 2011

रीवा ने दिया दुनिया को सफेद शेर...!!

ये कारनामा किया था रीवा राज्य के तत्कालीन नरेश महाराज मार्तण्ड सिंह ने. उन्होने रीवा राज्य के बरगड़ी जंगल(वर्तमान मे सीधी जिले के गोपद बनास तहसील में) से सफेद शेरों के वंशज को, 27 मई,1951 को पकड़ा था.उस समय वह 9 माह का था. नाम रखा मोहन.उसे गोविन्दगढ़ किले में रखा गया.महाराजा ने सफेद शेर की वंशवृद्धि के प्रयास शुरू किया...राधा नाम की शेरनी को मोहन के साथ रखा गया...अन्तत: 30 अक्टूबर 1956 को मोहन और रामबाई नामक शेरनी के सम्पर्क से सफेद रंग के एक नर और तीन मादा शावकों का जन्म हुआ...9 अगस्त 1962 को दो सफेद शेर कलकत्ता भेजे गए, 1962 मे ही एक-एक अमेरिका और इंग्लैण्ड के चिड़ियाघर भेजे गये.
मोहन ने 18 दिसंबर 1967 को अंतिम सांस ली.उसका राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार किया गया. मोहन का सिर आज भी बाघेला म्यूजियम,रीवा में संरक्षित है.
रीवा के लोग इस बात पर गर्व करते रहे हैं कि उन्होने दुनिया को सफेद शेर दिया.....तो रीवा के शेर और शेरनियों आज आप जहां भी हों, लोगों को बताइये कि हम हैं...!!

Friday 20 May 2011

ज्ञानी और मूर्ख कब एक जैसे दिखते हैं..?

दिन भर युद्ध करने के बाद, अर्जुन कृष्ण के साथ अपने तम्बू में बैठे थे.फागुन उतर रहा था...आसपास के जंगलों में महुए की बहार थी...एक आदिवासी तरुणी प्रतिदिन गोधूलि के बाद उन्हें महुए का आसव दे जाती थी...आम की टिकोरियों के साथ लवण रखकर दोनो जने कुल्हड़ मे आसव लेकर मंत्रणा कर रहे थे...
अर्जुन उवाच---गुरू...! मैं विषयांतर करेल्ला हूं...डोंट माइंड प्लीज़...
कृष्ण उवाच्---कहो पार्थ...बहुत दिन हो गये...मैं भी विषय-वासना से दूर हूँ...बड़ा मोनोटोनस फील हो रहा है...
अर्जुन----ज्ञानेश्वर ! आज आपने मुछे मूर्ख कहकर डांट दिया था...क्या बुद्धिमान और मूर्ख कभी एक जैसे हो सकते हैं प्रभू ???
कृष्ण-----हाँ पार्थ ! ज्ञानी और मूर्ख बिल्कुल एक जैसे होते हैं ,जब वो किसी स्त्री के प्रेम में कूद पड़ते हैं...

अति सर्वत्र वर्जयेत...!

क्रिकेट की अति हो गयी है.पिछले चार महीनों में इतना क्रिकेट हो गया है कि पेट फूल गया.फिर इस T20 ने तो इस कलात्मक खेल का ऐसा सत्यानाश किया है कि क्या कहें...जैसे एक सुन्दर लाजवंती नारी को बार-बाला बना दिया हो. क्रिकेट के रस और रोमांच की जगह एक ऐसी ऊब भर गयी है जिससे उबरने में बहुत समय लगेगा. इसखेल का सारा सौन्दर्य ही खत्म कर दिया इस नामुराद T20 ने.बल्ले और गेंद की वो रोमैन्टिक कशमकश कहीं दिखाई ही नहीं पड़ती..और खिलाड़ियों की वो अदाएँ भी पकड़ में नहीं आतीं, जिन पर अंजू महेन्द्रुएँ, नीना गुप्ताएँ, ज़ेमिमाएँ,नगमाएँ,दीपिकाएँ फिदा हो जाया करती थीं...अब गेंद या तो गेंदबाज़ के हाथ मे दिखती है या बाउण्ड्री की तरफ भागती हुई...और बल्ला तो ऐसे चलता है जैसे धोबी की मोगरी...बल्ले की सारी मांसलता ही ओझल हो गयी है....और चीयर लीडर्स की मांसलता को कोई कौड़ियों भाव नहीं पूछ रहा है...बस यही है कि--दे दनादन..ले धनाधन..!!

Tuesday 17 May 2011

बुद्धम् शरणम् गच्छामि..!

आज बुद्ध जयन्ती है...बुद्ध आप्त-पुरुष माने जाते हैं...यानी जिनके कहे पर कोई सवाल न उठाया जाय..!..हालांकि सवाल तो उनके रहते ही, उनके ही शिष्यों ने उठाने शुरू कर दिये थे, लेकिन ये दीगर बात है. यहाँ मुख्य अभिप्रेत ये है कि आज हमारी जीवन शैली क्या हमें इतनी गुंजाइश देती है कि हम ज़रा सा रुककर अपने महापुरुषों की बातों को याद कर पायें...उन्हें जीवन में उतारनें की बात तो बाद की है...?
दूसरी बात ये कि हमारे देश में महापुरुषों के जातिकरण का चलन चल निकला है. बुद्ध का भी अपहरण एक खास वर्ग ने कर लिया है...और मज़े का अंतर्विरोध देखिये, कि जो बुद्ध आस्था और मूर्ति-पूजा का विरोध करते थे ,उनके अपहर्ताओं ने न सिर्फ उनकी मूर्तियां बनवायीं बल्कि उनकी आड़ में अपनी,अपने आकाओं, हाथी-घोड़ों तक की मूर्तियों से देश को पाट दिया.....प्रासंगिकता का क्या यही उत्तर आधुनिक अर्थ है...?????

Friday 13 May 2011

जो तुम ऐसे होती




जो तुम ऐसे होतीं

जैसे सुबह के लिए सूरज.

गेहूँ की बालियों को पकाने के लिए
जैसे ठंड का होना.

एक मुकम्मल ग़ज़ल में आखीर तक
जैसे आते हैं काफिए.

जैसे पत्तियों में होता है क्लोरोफिल.

तुम्हारा होना
कच्चे घड़े के लिए
भट्ठी की आग की तरह होता.

कि तुम किताब में ज़िल्द की तरह होतीं
तो पन्ने पन्ने बिखर जाने का
डर न होता मुझे.

एक पुरी हरी पृथ्वी के लिए
उसकी कोख में तुम इकलौता बीज होतीं.
जो तुम ऐसे होतीं
जैसे हर खत्म हो जाने वाली बात के बाद
होती है एक शुरुआत

तुम्हें होना ही था
तो ऐसे होतीं
जैसे
दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर
चढ़ने वाले के साथ
होती है आखिरी उम्मीद.