Pages

Saturday 29 March 2014

ऐसे तो, समय रुकता नहीं कभी !


ऐसे तो
समय रुकता नहीं कभी
पर उसकी धार के किनारे
हमारा कोई क्षण
ठिठका रह जाता है सालों साल।

दीवार और कलाइयों पर
निशान छोड़ती
घड़ी की सूइयाँ घूमती रहती हैं
और हमारा
छः बजकर तीस मिनट
वहीं खड़ा रहता है अवाक्
ठंड की शाम में भी
माथे पर उभर आये
पसीने की एक परत लिए।

कैलेण्डर बदलता रहता है शताब्दियाँ
लेकिन
अक्टूबर, सत्तान्नवे की
सत्रह तारीख पर
लगाए गए गोले को
नहीं मिटा पाया वह किसी जतन।

सूर्य घूमा
पृथ्वी ने लगाए चक्कर
चन्द्रमा ने बदलीं कलाएँ
हवाएँ, ऋतुएँ बदलती रहीं
और हमारा कोई एक क्षण
हो गया इन सबसे बैरागी।

सूर्य पृथ्वी और चन्द्रमा से
छुपी रह जाती हैं
क्षणों में घटने वाली
खगोलीय घटनाएँ
स्थिर में आने वाले भूकम्प
चरखा चलाने वाली बुढ़िया का रहस्य
और दो खरगोशों की कहानी।

ऋतुओं की खुर्दबीन से
ओझल ही रहता है
हमारे उस क्षण का मौसम विज्ञान।

यह गति में
स्थिरता का सौन्दर्य है
ध्वनि में मौन का नाद
और जीवन के नृत्य में
मृत्यु का स्थायी।

Monday 10 March 2014

मैं सोशल मीडिया पर, प्रिन्ट मीडिया का कवि हूँ !

[योगेश्वर बोले ही चले जा रहे थे----
मैं प्रकाशों में सूर्य हूँ। वेदों में सामवेद, देवों में इन्द्र, रुद्रों में शिव हूँ। पर्वतों में मेरु, पुरोहितों में बृहस्पति, वाणी में ओंकार, वृक्षों में अश्वत्थ, देवर्षियों में नारद, घोडों में उच्चैःश्रवा, हाथियों में एरावत और सांपों में वासुकि हूँ।
मैं प्रजनकों में कामदेव, अक्षरों में अकार, समासों में द्वन्द्व समास हूँ।

मैं ऋतुओं में वसन्त, छलियों में जुआ, विचारकों में उशना, और रहस्यों में मौन हूँ।

मैं सोशल मीडिया में, प्रिन्ट मीडिया का कवि हूँ ! ] 


--हाँ, मैं कवि-लेखक हूँ. अपने को विशिष्ट, ऊपर और सुरक्षित बनाने के लिए हम क्या-क्या नहीं करते !

--मैं आपकी अच्छी कविता को भूलकर भी like नहीं करता, लेकिन आपकी ऊल-जलूल और बेमतलब पोस्ट पर वाह-वाह कर देता हूँ--ताकि आप धन्यभाग मानकर मेरी प्रशंसा में कभी कमी न रखें।

--मैं अक्सर ऐसी पोस्ट लगाता हूँ जो किसी को समझ न आए !
 और आप एहसासे-कमतरी के मुस्तकिल मरीज़ बने रहें।

--मैं अक्सर महान व्यक्तियों और महान विचारों का धत्-करम करता हूँ !
ताकि छोटे-मोटे जीवधारी तो बम् के धमाके से ही खेत रहें।

--मैं अपनी रचनाएं अपने मित्रों से शेयर करवाता हूँ, और उनकी मैं करता हूँ !
इससे मेरा बडप्पन, भाईचारा और सहिष्णुता असंदिग्ध बनी रहती है।

--मैं बिला नागा, नामालूम कौन सी दुनिया की, कौन सी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित अपनी रचना की,
अस्पष्ट तस्वीरें व़़ॉल पर लगाते हुए सकुचाता हूँ।

--मैं आए दिन सभा-गोष्ठियों में सदारत करने जाता हूँ !
और यह जानते हुए भी कि आप चार सौ कोस दूर रहते हैं, आपको आमंत्रित करना नहीं भूलता हूँ।

--अब यह कहने की ज़रूरत नहीं है, कि मुझे कवियत्रियों में ज्यादा प्रतिभा और संभावना दिखायी पड़ती है !
आरम्भ में मैं उन्हें छन्द और बहर जैसी, व्याकरण-सम्मत, नितान्त गैर-रूमानी सलाहें दिया करता हूँ।

--मैं अपनी प्रशंसिकाओं से inbox में चैट तभी करता हूँ, जब वो बहुत इसरार करती हैं !
और वहाँ मैं बहुत विषय-निष्ठ रहता हूँ।

--मैं इन अबलाओं को बहुधा, अपने समकालीन दुष्ट कवि-लेखकों से कैसे बचा जाये, के उपाय बताता हूँ।

--मुझे इन सुमुखि ललनाओं की निष्फल जाती प्रतिभा, उकसाने की हद तक प्रेरित कर रही है !
अब मैने निश्चय किया है कि मैं कुछ ही दिनों में संपादक-प्रकाशक बन जाऊँगा।

--लेकिन आप मायूस न हों। मैं इन अबलाओं को उनके मुकाम तक पहुँचा कर फिर लौट आऊँगा साहित्य-सेवा के लिए फेसबुक पर।