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Monday 21 March 2011

अल्बेयर कामू...

पीड़ा की हद से गुज़र जाना ही जीवन में सुख की भावना को जगाता है.किसी भी क्षण हमारी भावना अपनी चरम् तीव्रता में अपने से विपरीत भावना को जन्म देती है....!

Saturday 19 March 2011

He और She का त्यौहार होली

He और She का त्यौहार होली

इस होली में

आसमान मे भरना
अपने मनचाहे रंग                                                                                             
बादलों को रंगना सांवला                                                                                        
हवा को रंगना सफेद                                                                                           
तुम रंगना धूप को सुनहरा                                                                                      
पृथ्वी को रंगना हरा                                                                                            
चाँद को ज़रा उजला रंगना                                                                                      
और तारों को रंगना चमकीला                                                                                    
दिशाओं को रंगना नीला.                                                                                        

देखना..इस होली में                                                                                           
मैं इन्द्रदनुष बन जाऊँगा.

Friday 18 March 2011


यत्र नार्यस्तु ना पूज्यंते, तत्र कौन रमन्ते..??

पर-स्त्री-गमन और पर-स्त्री-आगमन में ज़्यादा ख़तरनाक कौन है..?

Monday 14 March 2011

जय हनीमून जी !



विवाह,पारिवारिक संस्था के लिए सबसे महत्वपूर्ण और परिवर्तनकारी घटना होती है.एक नया सदस्य परिवार का हिस्सा बनता है तो ज़रूरी तौर पर पारिवारिक परिधि में कुछ परिवर्तन हहो ही जाते हैं.परिवार के वृत्त की तृज्या बदल जाती है और केन्द्र पर बनने वाले कोण भी बदल जाते हैं.पति-पत्नी-माता-पिता-सास-ससुर-ननद-भौजाई के बीच के अंतर्संबन्धों के नये समीकरण तैयार होते हैं
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इन अचर राशियों के अलावा इस समीकरण में कुछ चर राशियां भी होती हैं,जिनका मान समय के विस्तार मे निकलता चलता है.ये चर राशियां हैं-प्रेम,जलन,ईर्ष्या,सम्मान,उत्साह,यश-अपयश और संमृद्धि.इन राशियों के मान इस बात पर निर्भर करते हैं कि परिवार की अचर राशियों ने आपस मे कैसे गुणात्मक संबंध बनाये
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शादियों के इस मौसम में मेरे एक परिचित के बेटे की शादी हुई.चलन के मुताबिक सारे इन्तज़ामात संविदा के तहत थे र चकाचक थे.ज़ाहिर है कि घर में मेहमानों की भीड़-भाड़ थी.और ऐसे में कितना भी बड़ा घर हो,छोटा ही पड़ने लगता है.बारात लौटने के बाद घर की चहल-पहल बेटे-बहू के आराम के लिए बाधक लगी और सर्व-सम्मति से नव-युगल के ठहरने का इंतज़ाम शहर के एक होटल मे कर दिया गया.वर-वधू रिसेप्शन के बाद उठकर सीधे होटल गये जहां होटल मैनेजर उनके सुहागरात की व्यवस्था भी करवा दी थी. कमरे मे रूमानी संगीत और फूल-पत्तियो की व्यवस्था एक्स्ट्रा पेमेंट पर कर देने में होटल मैनेज़र उत्साहपूर्वक तैयार हो गया. अगले दिन दिन नव-युगल हनीमून पर गोवा के लिए निकल जाने वाले थे.
अब इस तरह के विवाह जहां सारी व्यवस्था ठेके पर होती है-बेटा-बहू अगले ही दिन हनीमून पर चले दाते हैं-मेहमान केवल व्यवहार देने आते हैं- ऐसे विवाह समारोहों से पारिवारिक और सामाजिक जीवन कितने समरस और मजबूत होते होंगे, इसका अंदाज़ा हम लगा सकते हैं.
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इस जनपद के लिए यह एक नये तरह का वाकया था. उत्सव मे शामिल लोगों ने,उत्सव मे शामिल नही हुए लोगों को जिज्ञाशापूर्ण ढंग से यह सूचना दी.इस घटना के निहितार्थ वर्तमान पारिवारिक जीवन और भावी दाम्पत्य मे खोजे जा सकते हैं.हनीमून पर जाना पहले उच्चवर्ग मे ही प्रचलित था.लेकिन अब यह मध्यवर्ग और निम्नवर्ग की परंपरा का एक हिस्सा बन गया है.घर के लोग महीनों पहले से विवाह की तैयारी मे जुटते हैं.बेटा शादी के दो दिन पहले ‘job’ से घर आता है और शादी के अगले दिन बीवी के साथ हनीमून पर चला जाता है, फिर वहीं से बीवी मायके चली जाती है.शादी के बाद जो दस-बारह घंटे परिवार और रिश्तेदारों के साथ बिताने का अवसर बेटे के पास होता है,उसे वह अपने कमरे में पत्नी के साथ आराम करने में बिताना ज़्यादा पसंद करता है.
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वैवाहिक अनुष्ठानों मे एक अद्यतन चलन शुरू हुआ है-एकाउण्ट पेयी विवाहों का.इसमे वर और कन्या-दोनो पक्षों से शगुन,उपहारों आदि की आवश्यक सामग्री का नकद भुगतान, विवाह के पहले ही एक-दूसरे के बैंक खातों में पहुँचा दिया जाता है. इससे विवाह की रस्मो में होने वाले श्रम की बचत हो जाती है,और किसी तरह का व्यतिक्रम होने की गुंजाइश भी नहीं बचती...कुछ समय पहले एक विवाह के बाद एक ऐसा नतीज़ा सामने आया जिसने थोड़ा चौंका दिया.एकाउण्ट-पेयी शादी के बाद हनीमून से बेटा-बहू घर आये.बेटे ने माँ से कहा कि बहू को कुछ दिन के लिए माँ के पास रहने के लिए छोड़ देते हैं.माँ ने यह कहते हुए मना कर दिया कि बहू को भी अपने साथ ले जाओ,इसे मैं यहां कैसे सम्भाल पाऊँगी !
ये चलन हमारे आधुनिक पारिवारिक गठन और रिश्तों में आये बदलाव की ओर स्पष्ट इशारे करते हैं.निश्चित तौर पर यह नवीन मानवीय स्वार्थपरकता का अभिजात्य रूप है.यह पारिवारिक जीवन के विखंडन और लगातार बढ़ रहे एकाकीपन की सार्वजनिक स्वीकृति है.
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हनीमून की परंपरा के पीछे सर्वाधिक प्रचलित मान्यता यह है कि इससे नवविवाहित जोड़े को एक-दूसरे को जानने का एकांत और पर्याप्त अवसर मिलता है.यहां यह भी ध्यान दीजिये कि पति-पत्नी की उत्सुकता एक-दूसरे को जान लेने मे है, एक-दूसरे का होने मे में नहीं ! मेरे ख़याल में विवाह एक-दूसरे का होने के लिए होता है; एक-दूसरे का ही क्यूँ, तीसरे-चौथे-पाँचवे-पूरे परिवार का होने के लिए होता है. और आजकल तो विवाह तय हो जाने और विवाह हो जाने के बीच ही एक-दूसरे को जान लेने की कवायद शुरू हो जाती है...मुझे बताइये,एक-दूसरे का हो जाना, जानने के लिए ज़यादा आसान नहीं है क्या ?
मेरी एक कवियत्री-मित्र स्वरांगी साने ने बहुत पहले मुझसे कहा था,कि नज़दीकी रिश्तों में एक-दूसरे को जानने की प्रक्रिया ऐसी होनी चहिए,जैसे प्याज के छिलके एक-एक करके उतार रहे हों—धैर्य के साथ,समय लेकर !
हनीमून के बहाने एक-दूसरे को जानने के लिए जो पर्याप्त समय लिया जाता है, मुझे लगता है वह बैक फयर करता है.एकाध हफ्ते ही जब लोग एक-दूसरे का सब कुछ जान लेते हैं तो आगे के जीवन में निन्दा के लिए इतना अधिक समय बच रहता है कि उससे बचना मुश्किल हो जाता है. पारिवारिक दबाव और संकोच को तो आप पहले ही छोड़ आये हैं ! यही वज़ह है कि जो विवाह गहरे आनन्द और सुख-दुख सहने की क्षमता में आश्चर्यजनक वृद्धि कर सकता था,वह आपको धीरे-धीरे अवसाद और अलगाव की ओर ले जाता है.

Sunday 13 March 2011

कैसी दुनिया बनायेंगे ये बच्चे !

इस समय देश के अधिकांश बच्चे परीक्षा दे रहे हैं. हमारे देश मे परीक्षा होती नही,बल्कि ली और दी जाती है.मुझे यह दृश्य ऐसा दिखता है जैसे एक साथ अनेक रोबोट अपने निर्माता के सामने अपनी क्षमता और उपयोगिता साबित कर रहे हों....आप सब ये जानते हैं कि एक साजिश के तहत हमारी पूरी शिक्षा-पद्धति बच्चों को रोबोट बना रही है.

बच्चों में व्यक्तित्व नदारत होता जा रहा है.इस दुनिया के आक्रामक संचालकों ने अपने मंसूबों के लिए सबसे कोमल और निरीह लोगों को चुना है.बच्चे उनके लिए ऐसे संसाधन हैं जिन्हें अपने हित के लिए बड़ी आसानी से प्रोग्राम किया जा सकता है.

ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि बच्चों के भीतर सृजनात्मकता पैदा ही न पाये.'सृजनात्मकता' हमेशा 'व्यवस्था' के  लिए खतरनाक होती है.सारे बच्चे 'सूचना-केन्द्रों' के रूप मे ही सफल/असफल हो रहे हैं.

दुखद पहलू ये है कि इस पूरी साजिश में अभिभावक भी शामिल हैं या शायद मज़बूर....लीक छोड़कर चलने का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता.

जिस तरह की ये दुनिया बन रही है,उसे सब कोसते हैं,पर उसे बदलने की कोशिश करने वाले नगण्य हैं.दुनिया की अगली शक्ल आज के यही बच्चे बनायेंगे.क्या हम इन्हें साजिशों से बचा नहीं सकते ?हम इन बच्चों को एक व्यक्तित्व नहीं दे सकते??

Friday 11 March 2011

केदारनाथ सिंह की कविता


चट्टान

चट्टान को तोड़ो
वह सुन्दर हो जायेगी
उसे तोड़ो
वह और, और सुन्दर होती जायेगी

अब उसे उठालो
रख लो कन्धे पर
ले जाओ शहर या कस्बे में
डाल दो किसी चौराहे पर
तेज़ धूप में तपने दो उसे

जब बच्चे हो जायेंगे
उसमें अपने चेहरे तलाश करेंगे
अब उसे फिर से उठाओ
अबकी ले जाओ उसे किसी नदी या समुद्र के किनारे
छोड़ दो पानी में
उस पर लिख दो वह नाम
जो तुम्हारे अन्दर गूँज रहा है
वह नाव बन जायेगी

अब उसे फिर से तोड़ो
फिर से उसी जगह खड़ा करो चट्टान को
उसे फिर से उठाओ
डाल दो किसी नींव में
किसी टूटी हुई पुलिया के नीचे
टिको दो उसे
उसे रख दो किसी थके हुए आदमी के सिरहाने

अब लौट आओ
तुमने अपना काम पूरा कर लिया है
अगर कन्धे दुख रहे हों
कोई बात नहीं
यक़ीन करो कन्धों पर
कन्धों के दुखने पर यक़ीन करो

यकीन करो
और खोज लाओ
कोई नई चट्टान !

केदारनाथ सिंह

मेरा यह ब्लॉग

11 मार्च, 2011

साथियो,यह ब्लॉग मैने कला-संस्कृति-साहित्य और जीवन-शैली पर अपने और आपके विचार साझा करने के लिए शुरू किया है.यद्यपि ऐसे मंचों की कोई कमी नहीं है, फिर भी हर नयी साझेदारी कुछ नया देती है-इसी विश्वास के साथ मेरा यह विनम्र प्रयास है. आप सब का सहयोग इस ब्लॉग को जीवंत बनायेगा..

Thursday 10 March 2011

नमस्कार ! मुझे आप सबके स्नेह और मार्गदर्शन की ज़रूरत पड़ेगी....