इस समय देश के अधिकांश बच्चे परीक्षा दे रहे हैं. हमारे देश मे परीक्षा होती नही,बल्कि ली और दी जाती है.मुझे यह दृश्य ऐसा दिखता है जैसे एक साथ अनेक रोबोट अपने निर्माता के सामने अपनी क्षमता और उपयोगिता साबित कर रहे हों....आप सब ये जानते हैं कि एक साजिश के तहत हमारी पूरी शिक्षा-पद्धति बच्चों को रोबोट बना रही है.
बच्चों में व्यक्तित्व नदारत होता जा रहा है.इस दुनिया के आक्रामक संचालकों ने अपने मंसूबों के लिए सबसे कोमल और निरीह लोगों को चुना है.बच्चे उनके लिए ऐसे संसाधन हैं जिन्हें अपने हित के लिए बड़ी आसानी से प्रोग्राम किया जा सकता है.
ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि बच्चों के भीतर सृजनात्मकता पैदा ही न पाये.'सृजनात्मकता' हमेशा 'व्यवस्था' के लिए खतरनाक होती है.सारे बच्चे 'सूचना-केन्द्रों' के रूप मे ही सफल/असफल हो रहे हैं.
दुखद पहलू ये है कि इस पूरी साजिश में अभिभावक भी शामिल हैं या शायद मज़बूर....लीक छोड़कर चलने का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता.
जिस तरह की ये दुनिया बन रही है,उसे सब कोसते हैं,पर उसे बदलने की कोशिश करने वाले नगण्य हैं.दुनिया की अगली शक्ल आज के यही बच्चे बनायेंगे.क्या हम इन्हें साजिशों से बचा नहीं सकते ?हम इन बच्चों को एक व्यक्तित्व नहीं दे सकते??
बच्चों में व्यक्तित्व नदारत होता जा रहा है.इस दुनिया के आक्रामक संचालकों ने अपने मंसूबों के लिए सबसे कोमल और निरीह लोगों को चुना है.बच्चे उनके लिए ऐसे संसाधन हैं जिन्हें अपने हित के लिए बड़ी आसानी से प्रोग्राम किया जा सकता है.
ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि बच्चों के भीतर सृजनात्मकता पैदा ही न पाये.'सृजनात्मकता' हमेशा 'व्यवस्था' के लिए खतरनाक होती है.सारे बच्चे 'सूचना-केन्द्रों' के रूप मे ही सफल/असफल हो रहे हैं.
दुखद पहलू ये है कि इस पूरी साजिश में अभिभावक भी शामिल हैं या शायद मज़बूर....लीक छोड़कर चलने का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता.
जिस तरह की ये दुनिया बन रही है,उसे सब कोसते हैं,पर उसे बदलने की कोशिश करने वाले नगण्य हैं.दुनिया की अगली शक्ल आज के यही बच्चे बनायेंगे.क्या हम इन्हें साजिशों से बचा नहीं सकते ?हम इन बच्चों को एक व्यक्तित्व नहीं दे सकते??
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