रात्रि के घनघोर अंधकार में राजा विक्रम एक बार फिर श्मशान जा पहुचा. बेताल बड़ी व्यग्रता से उसकी प्रतीक्षा करता हुआ पेड़ के नीचे तम्बाकू मलते हुए बैठा था. उसे भी विक्रम के साथ इस खेल में मज़ा आने लगा था.विक्रम की आहट पाते ही वह फुर्ती से उठा और पेड़ पर उल्टा लटक गया.
राजा विक्रम आया. वह गमछे से अपना पसीना पोंछ ही रहा था कि बेताल कूद कर उसकी गर्दन से लटक गया. विक्रम उसे लादकर चल पड़ा.....
>बेताल ने कहानी शुरू की-----
राजन ! एक शहर के एक नामचीन महाविद्यालय में हिन्दी साहित्य के एक व्याख्याता थे...मीठी वाणी बोलते थे. अपने मेनिफेस्टो में कम्युनिस्ट थे, पर निरापद थे....अध्यापन,संगोष्ठियों,उत्तर-पुस्तिकाओं की जाँच और प्रश्न-पत्रों की सेटिग में ही रमे रहते थे. इस कार्य मे उनके नाबालिग कम्युनिस्ट शिष्य उनकी भरपूर मदद किया करते थे......
सब कुछ ठीक-ठाक ही चल रहा था, कि पिछले बरस, बी.ए. तृतीय वर्ष का हिन्दी का पेपर सेट करने का ज़िम्मा विश्वविद्यालय ने उन्हे दे दिया. प्रो. साहब के लिए यह कोई नयी बात नहीं थी...लेकिन इस बार वे कोई नवाचार करने के मूड में थे.....सो एक नाबालिग शिष्य की सलाह पर प्रश्न-पत्र के खण्ड-स में उन्होने एक प्रश्न दिया-----
---- " हँसी तो फँसी "----इस मुहावरे का अर्थ बताते हुए, वाक्य में प्रयोग कीजिये ।
परीक्षा में जब पेपर छात्रों को दिया गया तो कुछ धार्मिक किस्म के छात्र इस मुहावरे को लेकर भड़क गये...बात तुरंत प्रो.साहब के विरोधियों के मार्फत कुलपति तक और फिर राज्यपाल तक पहँच गयी....थोड़ी-बहुत औपचारिकताओं के बाद प्रो.साहब पेपर सेट करने के अयोग्य घोषित कर दिये गये. साथ ही चरित्र-परिष्कार करने की चेतावनी भी दी गई....
कहानी खत्म कर बेताल ने अपना प्रश्न किया---"-अब तू बता विक्रम ! इसमें प्रोफेसर साहब की क्या गलती थी ?? "
3 comments:
Dear Bimlendu g.
Apka Blog Pakar Lagta Hai Jaise Sahitya aur Manoranjan ka khajana mil gaya.
A Lot of thanks.
D.Raghav
draghaw@gmail.com
मै तो केवल गंभीर लेखन के ही धनी समझती थी आप तो .....
मै तो केवल गंभीर लेखन के ही धनी समझती थी आप तो .....
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