शाम के धुँधलके मे
अधेड़ औरत का साइकिल सीखना
सिर्फ़ हवा से बातें करने की
आदिम इच्छा से भरी होना ही नहीं है.
वह ज़रूर
भूख और रोटी के बीच की
अनिवार्य दूरी
तय कर लेने की जल्दी में होगी.
गड़बड़ा रहा होगा
दो पहियों पर संतुलन
जिसे ठीक कर लेने की
हड़बड़ी में ही
खुल गया होगा जूड़ा
लहराये होंगे आधे सफेद बाल
जो यकीनन धूप में नहीं हुए हैं.
कि ठंड शुरू होने से पहले ही
दिन भर की धूप
बुन डालने की जल्दी में
उलझ गया होगा ऊन
तब शरारती बच्चे की पहुँच से दूर
बाकी बचा गोला
आसमान पर रख
घूम कर गोल गोल चाँद
दूर करना चाहती है उलझन.
कल उसे बुनना होगा
कुछ फूल कुछ पत्तियों वाला
गर्म स्वेटर
पूरे घर के लिए.
--विमलेन्दु
1 comment:
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
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