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Tuesday 3 April 2012

इसीलिए तुम्हें नदी होना था



जिस जगह
मेरे जीवन को बीतना था
वहाँ एक नदी नहीं थी बस !

इसीलिए मुझे ऐसा होना था
कि मुझमे धीरज नहीं होना था.

मुझे बस विलीन होना था
और कोई समुद्र भी
नहीं होना था मेरी प्रतीक्षा में.

मुझे कैसे पता होना था
कि अपने ही भीतर
बहा जा सकता है चुपचाप !

कहीं भी अड़ जानी थीं चट्टाने
और मुझे नहीं सूझना था
कि इन्हें काट कर
कैसे बढ़ना है आगे.

तब तक मुझे
रेत का स्वाद भी नहीं पता होना था
और यह भी नहीं पता होना था
कि तपती धरती के
पहले स्पर्श से
कितनी भाप निकलती है.

इसीलिए जब तुम मिलीं
तो तुम्हें नदी होना था
और मुझे तैरने से पहले
डूबना सीखना था ।

1 comment:

Onkar said...

wah, bahut sundar kavita