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Friday, 24 May 2013

सच पूछो तो

( प्रथम पुण्यतिथि पर, भगवत रावत को याद करते हुए....)


एक ऐसी जगह खोजता रहा जीवन भरजहाँ बैठकर बेफिक्री से
लिख पाता एक नाम
और कोई यह न पूछता
कि यह किसका नाम है.

हरदम चक्कर खाते चौबीसों घंटों में
इतना सा समय चाहिए था मुझे
जिसे आसानी से छिपाकर रख लेता
अपनी जेब में
और कोई यह न पूछता
उसे मैने कैसे खर्च किया.

भाषा से पटी पड़ी दुनिया में
कुछ ऐसे शब्द चाहिए थे मुझे जिन्हें
किसी अबोध लड़की के हाथों
गोबर-लिपी ज़मीन पर
चौक की तरह पूर देता
और कोई यह न पूछता
इसका है क्या अर्थ.

सच पूछो तो
इतने से कामों के लिए आया था पृथ्वी पर
और भागता रहा यहाँ से वहाँ ।

.................................भगवत रावत