( प्रथम पुण्यतिथि पर, भगवत रावत को याद करते हुए....)
एक ऐसी जगह खोजता रहा जीवन भरजहाँ बैठकर बेफिक्री से
लिख पाता एक नाम
और कोई यह न पूछता
कि यह किसका नाम है.
हरदम चक्कर खाते चौबीसों घंटों में
इतना सा समय चाहिए था मुझे
जिसे आसानी से छिपाकर रख लेता
अपनी जेब में
और कोई यह न पूछता
उसे मैने कैसे खर्च किया.
भाषा से पटी पड़ी दुनिया में
कुछ ऐसे शब्द चाहिए थे मुझे जिन्हें
किसी अबोध लड़की के हाथों
गोबर-लिपी ज़मीन पर
चौक की तरह पूर देता
और कोई यह न पूछता
इसका है क्या अर्थ.
सच पूछो तो
इतने से कामों के लिए आया था पृथ्वी पर
और भागता रहा यहाँ से वहाँ ।
.................................भगवत रावत
लिख पाता एक नाम
और कोई यह न पूछता
कि यह किसका नाम है.
हरदम चक्कर खाते चौबीसों घंटों में
इतना सा समय चाहिए था मुझे
जिसे आसानी से छिपाकर रख लेता
अपनी जेब में
और कोई यह न पूछता
उसे मैने कैसे खर्च किया.
भाषा से पटी पड़ी दुनिया में
कुछ ऐसे शब्द चाहिए थे मुझे जिन्हें
किसी अबोध लड़की के हाथों
गोबर-लिपी ज़मीन पर
चौक की तरह पूर देता
और कोई यह न पूछता
इसका है क्या अर्थ.
सच पूछो तो
इतने से कामों के लिए आया था पृथ्वी पर
और भागता रहा यहाँ से वहाँ ।
.................................भगवत रावत
2 comments:
नि:संदेह सुंदर
सही मे लाजवाब
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