विवाह,पारिवारिक संस्था के लिए सबसे महत्वपूर्ण और परिवर्तनकारी घटना होती है.एक नया सदस्य परिवार का हिस्सा बनता है तो ज़रूरी तौर पर पारिवारिक परिधि में कुछ परिवर्तन हहो ही जाते हैं.परिवार के वृत्त की तृज्या बदल जाती है और केन्द्र पर बनने वाले कोण भी बदल जाते हैं.पति-पत्नी-माता-पिता-सास-ससुर-ननद-भौजाई के बीच के अंतर्संबन्धों के नये समीकरण तैयार होते हैं
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इन अचर राशियों के अलावा इस समीकरण में कुछ चर राशियां भी होती हैं,जिनका मान समय के विस्तार मे निकलता चलता है.ये चर राशियां हैं-प्रेम,जलन,ईर्ष्या,सम्मान,उत्साह,यश-अपयश और संमृद्धि.इन राशियों के मान इस बात पर निर्भर करते हैं कि परिवार की अचर राशियों ने आपस मे कैसे गुणात्मक संबंध बनाये
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शादियों के इस मौसम में मेरे एक परिचित के बेटे की शादी हुई.चलन के मुताबिक सारे इन्तज़ामात संविदा के तहत थे र चकाचक थे.ज़ाहिर है कि घर में मेहमानों की भीड़-भाड़ थी.और ऐसे में कितना भी बड़ा घर हो,छोटा ही पड़ने लगता है.बारात लौटने के बाद घर की चहल-पहल बेटे-बहू के आराम के लिए बाधक लगी और सर्व-सम्मति से नव-युगल के ठहरने का इंतज़ाम शहर के एक होटल मे कर दिया गया.वर-वधू रिसेप्शन के बाद उठकर सीधे होटल गये जहां होटल मैनेजर उनके सुहागरात की व्यवस्था भी करवा दी थी. कमरे मे रूमानी संगीत और फूल-पत्तियो की व्यवस्था एक्स्ट्रा पेमेंट पर कर देने में होटल मैनेज़र उत्साहपूर्वक तैयार हो गया. अगले दिन दिन नव-युगल हनीमून पर गोवा के लिए निकल जाने वाले थे.
अब इस तरह के विवाह जहां सारी व्यवस्था ठेके पर होती है-बेटा-बहू अगले ही दिन हनीमून पर चले दाते हैं-मेहमान केवल ‘व्यवहार’ देने आते हैं- ऐसे विवाह समारोहों से पारिवारिक और सामाजिक जीवन कितने समरस और मजबूत होते होंगे, इसका अंदाज़ा हम लगा सकते हैं.
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इस जनपद के लिए यह एक नये तरह का वाकया था. उत्सव मे शामिल लोगों ने,उत्सव मे शामिल नही हुए लोगों को जिज्ञाशापूर्ण ढंग से यह सूचना दी.इस घटना के निहितार्थ वर्तमान पारिवारिक जीवन और भावी दाम्पत्य मे खोजे जा सकते हैं.हनीमून पर जाना पहले उच्चवर्ग मे ही प्रचलित था.लेकिन अब यह मध्यवर्ग और निम्नवर्ग की परंपरा का एक हिस्सा बन गया है.घर के लोग महीनों पहले से विवाह की तैयारी मे जुटते हैं.बेटा शादी के दो दिन पहले ‘job’ से घर आता है और शादी के अगले दिन बीवी के साथ हनीमून पर चला जाता है, फिर वहीं से बीवी मायके चली जाती है.शादी के बाद जो दस-बारह घंटे परिवार और रिश्तेदारों के साथ बिताने का अवसर बेटे के पास होता है,उसे वह अपने कमरे में पत्नी के साथ आराम करने में बिताना ज़्यादा पसंद करता है.
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वैवाहिक अनुष्ठानों मे एक अद्यतन चलन शुरू हुआ है-‘एकाउण्ट पेयी’ विवाहों का.इसमे वर और कन्या-दोनो पक्षों से शगुन,उपहारों आदि की आवश्यक सामग्री का नकद भुगतान, विवाह के पहले ही एक-दूसरे के बैंक खातों में पहुँचा दिया जाता है. इससे विवाह की रस्मो में होने वाले श्रम की बचत हो जाती है,और किसी तरह का व्यतिक्रम होने की गुंजाइश भी नहीं बचती...कुछ समय पहले एक विवाह के बाद एक ऐसा नतीज़ा सामने आया जिसने थोड़ा चौंका दिया.एकाउण्ट-पेयी शादी के बाद हनीमून से बेटा-बहू घर आये.बेटे ने माँ से कहा कि बहू को कुछ दिन के लिए माँ के पास रहने के लिए छोड़ देते हैं.माँ ने यह कहते हुए मना कर दिया कि बहू को भी अपने साथ ले जाओ,इसे मैं यहां कैसे सम्भाल पाऊँगी !
ये चलन हमारे आधुनिक पारिवारिक गठन और रिश्तों में आये बदलाव की ओर स्पष्ट इशारे करते हैं.निश्चित तौर पर यह नवीन मानवीय स्वार्थपरकता का अभिजात्य रूप है.यह पारिवारिक जीवन के विखंडन और लगातार बढ़ रहे एकाकीपन की सार्वजनिक स्वीकृति है.
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हनीमून की परंपरा के पीछे सर्वाधिक प्रचलित मान्यता यह है कि इससे नवविवाहित जोड़े को एक-दूसरे को जानने का एकांत और पर्याप्त अवसर मिलता है.यहां यह भी ध्यान दीजिये कि पति-पत्नी की उत्सुकता एक-दूसरे को जान लेने मे है, एक-दूसरे का होने मे में नहीं ! मेरे ख़याल में विवाह एक-दूसरे का होने के लिए होता है; एक-दूसरे का ही क्यूँ, तीसरे-चौथे-पाँचवे-पूरे परिवार का होने के लिए होता है. और आजकल तो विवाह तय हो जाने और विवाह हो जाने के बीच ही एक-दूसरे को जान लेने की कवायद शुरू हो जाती है...मुझे बताइये,एक-दूसरे का हो जाना, जानने के लिए ज़यादा आसान नहीं है क्या ?
मेरी एक कवियत्री-मित्र स्वरांगी साने ने बहुत पहले मुझसे कहा था,कि नज़दीकी रिश्तों में एक-दूसरे को जानने की प्रक्रिया ऐसी होनी चहिए,जैसे प्याज के छिलके एक-एक करके उतार रहे हों—धैर्य के साथ,समय लेकर !
हनीमून के बहाने एक-दूसरे को जानने के लिए जो पर्याप्त समय लिया जाता है, मुझे लगता है वह बैक फयर करता है.एकाध हफ्ते ही जब लोग एक-दूसरे का सब कुछ जान लेते हैं तो आगे के जीवन में निन्दा के लिए इतना अधिक समय बच रहता है कि उससे बचना मुश्किल हो जाता है. पारिवारिक दबाव और संकोच को तो आप पहले ही छोड़ आये हैं ! यही वज़ह है कि जो विवाह गहरे आनन्द और सुख-दुख सहने की क्षमता में आश्चर्यजनक वृद्धि कर सकता था,वह आपको धीरे-धीरे अवसाद और अलगाव की ओर ले जाता है.
3 comments:
ये आपने बिल्कुल सही कहा की लोगो ने एकाकीपन मे जीवन जीना शुरू कर दिया है , क्यूंकि लोग बे बजह किसी और का बोझ नहीं उठाना चाहते, इस अंधाधुंध दौड़ मे एकाकी परिवार का चलन बढ़ा है ....
मसले का दूसरा पहलू भी है।एक बार बीबीसी में एक ऐसे परिवार की कहानी सुनी जो एक कमरे के घर में रहता है।परिवार कैसा ? पत्नी, बेटे-बहु,बेटी और दो पोते।घर कुल मिलाकर एक कमरा।अब कैसी होगी वहाँ लोगों की निजता और कैसे होंगे कुछ इंसानी अंतरंग संबंध।खैर आपने उनकी बात लिखी है जो बाकायदा घरवाले और संपन्न हैं।तो इन्हीं घरों का ही सच है कि बीवी के साथ के एकांत क्षण दूभर हो जाते हैं।परिवारों का जो ताना-बाना है उसमें रात ही पति-पत्नी की होती है।इसी से आज़ाद होने के लिए हनीमून शुरू होकर फला फूला।अब जब यह पूरी तरह आत्मकेंद्रिकता में ही बदल गया है तो स्थिति चिंताजनक है ही।
एकाउंटपेयी विवाहों की बात खूब है।हनीमून जब पूरी तरह कार्पोरेट के हाथों चलेगा तब और रंग देखिएगा।
अभी तो विवाह की किचिर-पिचिर और हनीमून का साइड इफेक्ट उतना नाकाबिले बर्दाश्त नहीं।
bhut shi kha aapne...........
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