दिन भर युद्ध करने के बाद, अर्जुन कृष्ण के साथ अपने तम्बू में बैठे थे.फागुन उतर रहा था...आसपास के जंगलों में महुए की बहार थी...एक आदिवासी तरुणी प्रतिदिन गोधूलि के बाद उन्हें महुए का आसव दे जाती थी...आम की टिकोरियों के साथ लवण रखकर दोनो जने कुल्हड़ मे आसव लेकर मंत्रणा कर रहे थे...
अर्जुन उवाच---गुरू...! मैं विषयांतर करेल्ला हूं...डोंट माइंड प्लीज़...
कृष्ण उवाच्---कहो पार्थ...बहुत दिन हो गये...मैं भी विषय-वासना से दूर हूँ...बड़ा मोनोटोनस फील हो रहा है...
अर्जुन----ज्ञानेश्वर ! आज आपने मुछे मूर्ख कहकर डांट दिया था...क्या बुद्धिमान और मूर्ख कभी एक जैसे हो सकते हैं प्रभू ???
कृष्ण-----हाँ पार्थ ! ज्ञानी और मूर्ख बिल्कुल एक जैसे होते हैं ,जब वो किसी स्त्री के प्रेम में कूद पड़ते हैं...
2 comments:
हर अनुभव का खजाना है ..
nice
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