यह दिन
सृष्टि का पहला दिन था.
रची जानी थी इतनी बड़ी दुनिया
और हमारे पास कोई औजार न थे.
हमने सागर मे उतार दी थी अपनी नाव
हमारे हाथों मे पतवार भी न थी.
हमे रचना था समय
पर उसकी गति पर हम नियंत्रण नहीं कर सकते थे.
मेरे जीवन के रेगिस्तान मे
एक नदी की तरह आयीं थीं तुम
और मेरी पूरी रेत को
प्रेम मे बदल दिया था.
सृष्टि का पहला दिन था.
रची जानी थी इतनी बड़ी दुनिया
और हमारे पास कोई औजार न थे.
हमने सागर मे उतार दी थी अपनी नाव
हमारे हाथों मे पतवार भी न थी.
हमे रचना था समय
पर उसकी गति पर हम नियंत्रण नहीं कर सकते थे.
मेरे जीवन के रेगिस्तान मे
एक नदी की तरह आयीं थीं तुम
और मेरी पूरी रेत को
प्रेम मे बदल दिया था.
4 comments:
atee sundar bhai ji
sunder kavita...jaise kavita me ho rahi ho ek shrishti...
चित्र में ही सारी कविता व्यक्त है.अति सुन्दर.
सृष्टि और सृजन का बहुत आसान शब्दों में अर्थ उतरा है .
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