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Saturday, 18 June 2011

सृष्टि का पहला दिन

यह दिन
सृष्टि का पहला दिन था.


रची जानी थी इतनी बड़ी दुनिया
और हमारे पास कोई औजार न थे.

हमने सागर मे उतार दी थी अपनी नाव
हमारे हाथों मे पतवार भी न थी.

हमे रचना था समय
पर उसकी गति पर हम नियंत्रण नहीं कर सकते थे.

मेरे जीवन के रेगिस्तान मे
एक नदी की तरह आयीं थीं तुम
और मेरी पूरी रेत को
प्रेम मे बदल दिया था.

4 comments:

Susheel said...

atee sundar bhai ji

veena bundela said...

sunder kavita...jaise kavita me ho rahi ho ek shrishti...

पुरुषोत्तम पाण्डेय said...

चित्र में ही सारी कविता व्यक्त है.अति सुन्दर.

Anonymous said...

सृष्टि और सृजन का बहुत आसान शब्दों में अर्थ उतरा है .