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Monday, 18 July 2011

विभागाध्यक्ष की कार्पेट पर अमीबा...

हमेशा की तरह राजा विक्रमादित्य बेताल को लेकर चले तो शर्त के मुताबिक बेताल ने कहानी शुरू की--------


राजन, विश्वविद्यालय के अँग्रेजी के विभागाध्यक्ष प्रो.मिश्रा कई दिनो से परेशान थे...उनके साथ एक विचित्र किन्तु सत्य टाइप की घटना हो रही थी कई दिनों से ,जिसे वो किसी से कह नहीं पा रहे थे......

कोई उनके चेम्बर में, फर्श पर बिछी कीमती कालीन पर पेशाब कर जाता था.....

प्रो.मिश्रा शौकीन तबीयत के आदमी थे. सो अँग्रेजी विभाग में अपने चेम्बर को खूब आकर्षक रंग-रूप दे रखा था...एक रोज़ जब विभाग में पहुचे तो देखा कि उनकी टेबल के ठीक सामने हरे रंग की कालीन पर फाइन आर्ट टाइप का एक धब्बा बना हुआ है. चपरासी को बुलाकर पूछा----" ये धब्बा कैसा है यहाँ पर ? ".....
चपरासी कुछ सकपकाते हुए बोला----" साहब पानी का होगा.".....प्रो.मिश्रा ने उँगलियों से धब्बे को दबाया और सूँघकर बोले----" बेवकूफ , पानी का नही पेशाब का धब्बा है !"

उस दिन से रोज़ कोई उनके पहुँचने से पहले कलीन पर पेशाब कर जाता था. विभाग का दरवाज़ा खोलकर , चपरासी साफ-सफाई के बाद जब पानी लेने चला जाता, इसी बीच कोई आकर ये कारनामा कर जाता....

प्रो.मिश्रा ने तंग आकर पेशाब करने वाले को पकड़ने की योजना बनाई...

एक दिन वो अपने समय से काफी पहले विभाग पहुँच गये.दरवाज़ा उन्होने खुद खोला, और जाकर आल्मारी के पीछे छुप गये....लगभग पौन घंटा बाद एक आकृति ने उनके कमरे में प्रवेश किया....इधर-उधर देखकर आकृति विभागाध्यक्ष के टेबल के सामने बैठ गई.....और जब उठी तो वहाँ पर अमीबा की तरह का एक गीला धब्बा बन गया था.....

आकृति जाने को ही थी कि प्रो. मिश्रा आल्मारी के पीछे से कूद पड़े----" मिसेज़ तिवारी आप !! ये क्या करती हैं आप !!!"....
असिस्टेन्ट प्रो., मिसेज़ तिवारी अवाक् रह गईं थीं...सर..सर.. करते हुए सर्रर्रर्रर्र.....से बाहर भागीं......


माज़रा ये था कि प्रो. मिश्रा चाहते थे कि मिसेज़ तिवारी मातहत होने के नाते उन्हें अपना प्रेम-पात्र बनायें, जबकि मिसेज़ तिवारी अपना बसन्त रसायन विभाग के विभागाध्यक्ष पर लुटा रही थीं....बहुत समझाने-बुझाने के बाद भी जब मिसेज़ तिवरी नहीं समझीं तो प्रो. मिश्रा ने उनकी वेतनवृद्धि में अड़ंगा लगा दिया था....खिसियाकर मिसेज़ तिवारी ने उनके चेम्बर में पेशाब करना शुरू कर दिया.

कहानी खत्म कर बेताल ने प्रश्न पूछा-----" अब तू ही बता विक्रम ! असली अपराधी कौन है, मिसेज़ तिवारी--कि प्रो. मिश्रा ?? "

1 comment:

Anonymous said...

उसने उनको खाना खिलाया अपने दस्तों से...
मांगा जो पानी तो पेश आब कर दिया...

मास्टर का मास काटा
फिर भी टर बाकी रह गया..।

कहानी हो या कालीन
बारीक कातते हो

मूतो नहाओ
पूतो फलो
चलो!