कई बार माँ की गोद में सिर रखा
बहुत दिनों के बाद
एकदम शिशु हो गया.
मित्र से लिपटकर खूब चूमा उसे
वह एकदम हक्का बक्का.
कई बार पकड़े गये हजरत
बिना बात मुस्कुराते हुए.
लौकी की सब्जी भी
इतने स्वाद से खायी
कि जैसे छप्पन भोगों का रस
इसी कमबख्त में उतर आया हो.
आज खूब सम्भल कर चलाई स्कूटर.
जीवन से यह एक नये सिरे से मोह था.
कुछ चटक रंग
मेरी ही आँखों के सामने
मेरे पसंदीदा रंगों को बेदखल कर गये.
एकाएक जीवन की लय
विलम्बित से द्रुत में आ गई
एक शाश्वत राग को
मैं नयी बन्दिश में गाने लगा.
भीषण गर्मी में भी
कई बार काँप गया शरीर
अप्रैल के अंत की पूरी धूप
एकाएक जमकर बर्फ बन गई.
शर्म से पानी-पानी होकर
सूरज ने ओढ़ लिया शाम का बुर्का.
रात एक स्लेट की तरह थी मेरे सामने
जिस पर सीखनी थी मुझे
एक नई भाषा की वर्णमाला.
मैं एक अक्षर लिखता
और आसमान में एक तारा निकल आता
फिर धीरे धीरे
पूरा आसमान तारों से भर जाता.
तीन अक्षरों का तुम्हारा नाम पढ़ने में
पूरी रात तुतलाता रहा मैं ।
- विमलेन्दु
2 comments:
bhaon ko anokh rup me rkhte hain aap......... nice poetry.
तीन अक्षरों का तुम्हारा नाम पढ़ने में
पूरी रात तुतलाता रहा मैं ।
Limited words conveying everything...thats poetry :) Keep writing.
Post a Comment