कुछ इस तरह से
बदल रही थी उन दिनों ज़िन्दगी
कि ध्वनि गति मति और
यहां तक कि शून्य के भी अर्थ बदल रहे थे ।
मैं वर्णमाला को
गुरुकुल के बाहर पढ़ने लगा था ।
चीज़ों से मेरे रिश्ते बदल गये थे
हवा, हवा जैसी नहीं थी
और पानी
उस तरह से पानी नहीं रह गया था ।
मैं साँस लेता था
तो ऑक्सीजन थोड़े ही जाती थी मेरे फेफड़ों में
मुझे पानी से बड़ी जलन होती थी
कि एक अणु ही सही
हाइड्रोजन रकीब से कम नहीं था ।
आकाश के सामने मैं विनत था
वहीं एक निर्बल संभावना थी
तुम्हारे भरे होने की ।
उन दिनों
मैं ये नहीं था जो आज हूँ ।
बदल रही थी उन दिनों ज़िन्दगी
कि ध्वनि गति मति और
यहां तक कि शून्य के भी अर्थ बदल रहे थे ।
मैं वर्णमाला को
गुरुकुल के बाहर पढ़ने लगा था ।
चीज़ों से मेरे रिश्ते बदल गये थे
हवा, हवा जैसी नहीं थी
और पानी
उस तरह से पानी नहीं रह गया था ।
मैं साँस लेता था
तो ऑक्सीजन थोड़े ही जाती थी मेरे फेफड़ों में
मुझे पानी से बड़ी जलन होती थी
कि एक अणु ही सही
हाइड्रोजन रकीब से कम नहीं था ।
आकाश के सामने मैं विनत था
वहीं एक निर्बल संभावना थी
तुम्हारे भरे होने की ।
उन दिनों
मैं ये नहीं था जो आज हूँ ।
1 comment:
सुन्दर कविता
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