पिछले दिनों आसाराम की रंगबाज़ी और
बैकुण्ठ-प्रवास पर पूरे देश का मीडिया एकाग्र रहा। यह जगजाहिर हो चुका है कि
आसाराम पर आरोप है कि उन्होंने अपने ही एक शिष्य की नाबालिग पुत्री का यौन शोषण
किया। यद्यपि इस प्रकार के यौन शोषण संबंधी आरोप आसाराम पर के लिए नए नहीं हैं।
वैसे भी एक संतों का यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया जाना हमारे देश के लिए
कोई चौंकाने वाली घटना नहीं है। और भी कई स्वयंभू संत, मौलवी, पादरी, मुनि व ज्ञानी भाई जैसे तथाकथित धर्मगुरु
पहले भी यौन शोषण, हत्या, ज़मीनों पर नाजायज़ कब्ज़े जैसे विभिन्न अपराधों में आरोपी रह चुके हैं।
जब भी इस तरह के
संतों का दिव्यलोक उजागर होता है, मीडिया में इस बात को लेकर बहस छिड़ती है कि
आख़िर दूसरों को उपदेश व प्रवचन देने वाले ऐसे तथाकथित संत स्वयं आपराधिक व अनैतिक
गतिविधियों में क्यों शामिल पाए जाते हैं। जिन संतों को उनके अंधभक्त शिष्य भगवान
का दर्जा देने लग जाते हों, जिनके चित्र उनके
अनुयायी अपने घरों के मंदिरों में, घर की दीवारों यहां तक
कि अपने गले के लॉकेट में तथा जेब में रखने लगते हों ऐसे ‘पूज्य’ संतों की विभिन्न अपराधों में संलिप्तता के समाचार मिलने के बाद उनके
शिष्यों व अनुयाईयों पर आख़िर क्या गुज़रती होगी? क्या हमारे समाज को ऐसे ढोंगी,पापी व अपराधी लोगों को
धर्मगुरु का दर्जा देकर उन्हें सिर पर बिठाना चाहिए? और इन सबसे बड़ा
प्रश्र यह है कि धर्म प्रचारक बने बैठे यह स्वयंभू संत धर्म की इज़्ज़त बढ़ा रहे
हैं या उसे संदिग्ध बना रहे हैं ?
आसाराम सहित उनके समर्थकों ने व उन्हें समर्थन
देते आ रहे तथाकथित हिंदुत्ववादी संगठनों व उनके नेताओं ने देश को यह कहकर
गुमराह करने की कोशिश की कि आसाराम पर झूठे आरोप लगाकर हिंदू धर्म को बदनाम करने
के प्रयास किए जा रहे हैं। कुछ स्वयंभू हिंदूवादी नेताओं ने कहा कि-‘योजनाबद्ध तरीक़े से हिंदू संतों को झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है।
मुझे नहीं मालूम कि आसाराम ने पीडि़ता नाबालिग़ लडक़ी के साथ क्या व्यवहार किया।
परंतु यह बात तो दुनिया सुन ही रही है कि एक नाबालिग लडक़ी होने के बावजूद आसाराम
के शिष्य की इस नाबालिग पुत्री ने उनपर यौन शोषण के गंभीर व घिनौने आरोप लगाए हैं।
और निश्चित रूप से प्रत्येक अपराधी की तरह आसाराम भी इन आरोपों से बचने का प्रयास
करते हुए स्वयं को बेगुनाह बता रहे हैं।
आख़िरकार न तो आसाराम के समर्थक संगठनों का कोई
दांवपेंच काम आया न ही आसाराम की मनगढ़ंत बातों पर किसी ने अपने कान धरे। क़ानून
ने अपना काम किया। पुलिस ने पीडि़ता की एफ़ आईआर दर्ज की और बड़े ही नाटकीय ढंग से
काफ़ी हिला-हवाली और बहानेबाज़ी का सामना करने के बाद जोधपुर पुलिस ने उन्हें उनके
इंदौर स्थित आश्रम से गिरफ्तार कर लिया और अदालत ने उन्हें जेल भेज दिया।
सवाल यह है कि आसाराम के साथ उनपर लगे आरोपों के बाद जो कुछ भी हो रहा है क्या उससे हिंदू धर्म की बदनामी हो रही है? या फिर आसाराम अथवा इन जैसे दूसरे तथाकथित स्वयंभू सतों द्वारा जिस प्रकार तरह-तरह की आपराधिक गतिविधियों में उनके शामिल होने के मामले प्रकाश में आते हैं उनसे हिंदू धर्म बदनाम होता है?
सवाल यह है कि आसाराम के साथ उनपर लगे आरोपों के बाद जो कुछ भी हो रहा है क्या उससे हिंदू धर्म की बदनामी हो रही है? या फिर आसाराम अथवा इन जैसे दूसरे तथाकथित स्वयंभू सतों द्वारा जिस प्रकार तरह-तरह की आपराधिक गतिविधियों में उनके शामिल होने के मामले प्रकाश में आते हैं उनसे हिंदू धर्म बदनाम होता है?
वास्तविक घटनाक्रम क्या था इस विषय में सच्चाई
तो केवल पीडि़ता नाबालिग़ लडक़ी या आसाराम को ही पता है। फिर आख़िर उमा भारती जैसी महिला नेता किस आधार पर
आसाराम को बेगुनाह बता डालती हैं? अपने इन अंधभक्तों की ही
तरह आसाराम ने भी अपने बचाव में कई अस्त्र चलाए। उनमें एक हथियार यह भी इस्तेमाल
किया कि उन्हें सोनिया गांधी व राहुल गांधी के कहने पर फंसाया जा रहा है। एक और
चाल उसने अपनी इसी बात के समर्थन में यह चली कि वे मिशनरी के द्वारा धर्म परिवर्तन
के विरोधी थे इसलिए उन्हें यह दिन देखने पड़ रहे हैं।
बड़ी आसानी से समझा जा सकता है कि हिन्दू धर्म को कौन बदनाम कर रहा है । आज पूरी दुनिया
में इस्लाम पर संकट व बदनामी के बादल मंडरा रहे हैं। मुस्लिम जगत में इस विषय पर
यह कहा जा रहा है कि इस्लाम पर आए संकट के पीछे पश्चिमी देशों की साजि़श शामिल है।
मज़े की बात तो यह है कि यही बातें उन तथाकथित इस्लामपरस्तों द्वारा भी की जा रही
हैं जोकि मुसलमान का रूप धारण कर दिन-रात केवल आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने
में लगे हुए हैं। जो ताकतें मानव बम से बेगुनाह लोगों की आए दिन हत्याएं करवा रही
हों उनका यह कहना है कि इस्लाम को दूसरी ताकतें नुकसान पहुंचा रही हैं,हास्यास्पद
व्युत्पत्ति है । यहां भी सवाल यही उठता है कि जिस इस्लाम में किसी एक बेगुनाह की
मौत को पूरी मानवता की हत्या की संज्ञा दी गई हो, जिस इस्लाम में
जीव-जंतु तो क्या पेड़-पौधों को भी बेवजह काटने या उखाड़ फेंकने के लिए मना किया
गया हो उस धर्म में ख़ूनरेज़ी व हत्याओं का खेल खेलने वाले स्वयंभू इस्लामी
ठेकेदार इस्लाम की बदनामी का कारण हैं या फिर पश्चिमी शक्तियां अथवा दूसरे
उदारवादी मुस्लिम जगत के लोग?
इन संतों व उपदेशकों को भी यह बात समझनी
चाहिए कि उनके अनैतिक व आपराधिक क्रियाकलाप व उनकी सांसारिक गतिविधियां धर्म को
बदनाम कर रही हैं न कि उनके विरुद्ध कोई साजि़श रची जा रही है। दूसरों को मोहमाया
से दूर रहने की सीख देने वाले ये कर क्या रहे हैं ! मायामोह की ऐसी जकड़न
क्यों है ! सत्संग भवनों के नाम पर ‘प्रापर्टी डीलिंग’
के व्यापार में शामिल रहना, धर्म व आस्था के नाम पर
अपने साथ जुडऩे वाले अपने भक्तों की भीड़ को उपभोक्ता समझ कर उनके साथ व्यवसायिक
रिश्ते जोडऩा, अपने शिष्यों व अनुयाईयों की बहन-बेटियों को
अपनी हवस का शिकार बनाने का प्रयास करना, गद्दी की ख़ातिर हिंसा
यहां तक कि हत्या तक में शामिल पाया जाना तथा धर्म के नाम
पर अपने साम्राज्य का निरंतर विस्तार करते जाना-- क्या यही संत
स्वभाव है ? जिन्हें धर्म की बदनामी का भय है, उन्हें किसी बलात्कारी
अथवा अपराधी धर्मगुरु का बचाव करने के बजाए आम लोगों को ऐसे पाखंडियों से दूर रहने
व इनसे बचने की सलाह देनी चाहिए।
ऐसे अपराधी प्रवृति के लोगों को क़तई यह अबसर और अधिकार नहीं देना चाहिए कि
वे व्याभिचार, ज़मीन-जायदाद तथा धन संपदा के साम्राज्य का
विस्तार करने में जुटे रहें। धर्म की भी यह कैसी विडंबना है कि कहीं शराब का अवैध
धंधा करने वाला धर्मगुरु बना बैठा है तो कहीं कोई साईकल का पंक्चर बनाने वाला
व्यक्ति लोगों को जीने के सलीक़े सिखा रहा है। ऐसे स्वयंभू संतों की पृष्ठभूमि
ख़ुद ही यह बता देती है कि इस व्यक्ति की वास्तविकता आखिर क्या है?
दरअसल धर्म की बदनामी का कारण ऐसे
ही कलयुगी संत व धर्मोपदेशक हैं न कि उनकी आलोचना या इनकी निंदा करने वाले लोग। और
यही लोग उस समय सबसे ज्यादा तिलमिलाते हैं जब कोई धर्म की आलोचना कर बैठता है. जब
जीवन के हर क्षेत्र में आलोचना अनिवार्य और स्वीकार्य है तो फिर धर्म क्यों इतना
घबराता है ! ये आश्रम बनाकर व्यभिचार करें तो धर्म की सेवा है, और
कोई उँगली उठा दे तो वो काफिर हो गया ! अगर हम सच्चे धार्मिक हैं और अपने धर्म पर गर्व करते हैं
तो ऐसे कुकर्मियों की पैरवी करना बन्द कर देना चाहिए. इनकी जगह धर्म-स्थलों में
नहीं ‘बैकुण्ठ’ में ही है. हमने आलोचनाओं पर ध्यान दिया होता तो ऐसी सड़न न पैदा होती धर्म
में. तब न आसाराम होते न अजहर मसूद ।
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