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Tuesday, 12 April 2011

राम की शक्तिपूजा : निराला

महाप्राण निराला की कालजयी रचना.प्रसंग है राम की रावण के हाथों पराजय जनित निराशा,आत्म निरीतक्षण,प्रेरणा,शक्ति की नई मौलिक कल्पना,तमाम विघ्न-बाघाओं के बीच तप और अंत में शक्ति का नवोन्मेष...8-8 मात्राओं के तीन चरणो वाले छंद में लिखी िस कविता में 24 वर्णों के वैदिक गायत्री छंद गरिमा और औदात्य है.युद्ध के कोलाहल और घात-प्रतिघात के क्षणों को कवि ने महाप्रण और अर्ध स्वरों के प्रयोग द्वारा बखूबी सँजोया है----

रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखा ्अमर,
रह गया राम-रावण का अपराजेय  समर ।
आज का तीक्ष्ण  शरविधृतक्षिप्रकर, वेगप्रखर,
शतशेल संवरणशील, नील नभगर्जित   स्वर ।
प्रतिपल परिवर्तित व्यूह भेद कौशल    समूह,
राक्षस विरुद्ध प्रत्यूह, क्रुद्ध  कपि विषम    हूह।
विच्छुरित वह्नि राजीवनयन हतलक्ष्य बाण,
लोहित लोचन रावण मदमोचन    महीयान   ।
राघव लाघव  रावण वारणगत युग्म  प्रहर  ,
उद्धत लंकापति  मर्दित  कपि दलबल विस्तर ।
अनिमेष  राम विश्वजितदिव्य शरभंग भाव ,
विद्धांगबद्ध कोदण्ड मुष्टि  खर  रुधिर  स्त्राव ।
रावण  प्रहार  दुर्वार  विकल वानर  दलबल ,
मुर्छित  सुग्रीवानंद  भीषण गवाक्ष  गय नल ।
वारित सौमित्र भल्लपति अगणित मल्लरोध
गर्जित प्रलयाब्धि क्षुब्ध हनुमत् केवल प्रबोध ।
उद्गीरित वह्नि  भीम पर्वत कपि चतु:प्रहर ,
जानकी भीरु उर आशा भर,  रावण सम्वर   ।
लौटे युग दल, राक्षस पदतल पृथ्वी टलमल,
बिंध महोल्लास  से बार बार आकाश  विकल ।
वानर वाहिनी खिन्न, लख निज पति चरणचिन्ह,
चल रही शिविर की ओर स्थविरदल ज्यों विभिन्न ।।

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