Saturday, 18 June 2011
यदा कदा ही धर्मस्य : निशाने पर तीर
अर्जुन उवाच : योगेश्वर ! आप 16 हजार पटरानियों और इतनी सारी गोपियों को कैसे मैनेज कर लेते हैं? मैं तो 5 किलो बताशे मे बरगद का दूध डाल के खा गया, पर कुछ नहीं भया ! सुभद्रा तो फिर भी समझदार है, लेकिन पांचाली बड़ा 'इनफीरियारिटी' देती है माधव ! मेरा तीर निशाने पर लगता ही नहीं !!
श्री कृष्ण: हे पार्थ ! तुमने पहली बार मेरे 'फील्ड' का प्रश्न किया है. मुझे इसी विषय मे 'वाचस्पति' की उपाधि मिली थी.......
..बड़ा ही समीचीन प्रश्न हैतुम्हारा....इस युद्ध के बाद तुम्हारे बंधु-बान्धवों की सारी पटरानियों की ज़िम्मेदारी तुम्हारे ही 'अंग-विशेष' पर होगी...इसलिए बाकी सभी धर्मों का परित्याग करके मेरी बात सुनो------
ब्रह्म-मुहूर्त में उठकर एनीमा लगाओ और उसके बाद सात सिंघाड़े गुड़ के साथ खाओ. तत्पश्चात, वज्रासन में बैठकर त्रिबंध लगाओ.पांच मिनट तक....ध्यान रहे,इस स्थिति में सांस को बाहर की तरफ फेंकना है....इसके बाद ' पेल्विक-लिफ्ट ' करके शवासन कर लेना....फिर रात में शेर की तरह भोंकना..सॅारी..दहाड़ना...!
Labels:
यदा कदा ही धर्मस्य
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
shandar,
lajwab.
Post a Comment