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Sunday, 17 July 2011

स्व. चिड़ीमार वनवासी तीरंदाजी सम्मान




जब कई दिनों तक राजा विक्रमादित्य बेताल को पकड़ने नहीं आया तो बेताल उदास रहने लगा. चुड़ैलों के नृत्य-गान भी उसका मन न बहला पाते. शाम होते ही वह श्मशान के मुख्य दरवाज़े पर जाकर बैठ जाता और विक्रम की प्रतीक्षा करता.

बहुत दिन बाद जब विक्रम श्मशान आया तो कुछ दुर्बल दिखाई पड़ रहा था. उसे देखकर बेताल ने कुछ चिन्तित होकर उसकी दुर्बलता का कारण पूछा. विक्रम ने बताया कि उसे बवासीर की बीमारी हो गई थी. गुदामार्ग से निरंतर रक्त-स्राव के कारण दुर्बलता आ गई है.

विक्रम की यह दशा देखकर बेताल उसके साथ पैदल ही चल पड़ा...रास्ता काटने के लिए उसने कहानी शुरू की----

राजन् ! तुमने महाभारत के गुरु द्रोण का नाम तो सुना ही होगा , जिनके प्रिय शिष्य अर्जुन ने तीरंदाजी में बड़ी ख्याति अर्जित की थी. गुरु द्रोण युद्ध-कला से सम्बंधित एक त्रैमासिक पत्रिका ' आखेट ' का प्रकाशन भी किया करते थे, जिसका अधिकतर काम-काज अर्जुन ही देखता था. यह पत्रिका राजवंश से आर्थिक सहायता प्राप्त थी.

एक दिन गुरु द्रोण अपने शयनकक्ष में विश्राम कर रहे थे. गर्मी का समय था. अर्जुन आम की गुठली को पीसकर, सरसो के तेल में मिलाकर ले आया. यह लेप गुरु द्रोण के तलवों में मलने लगा. इस लेप से गर्मी का प्रकोप कदाचित कुछ कम हो जाता था.

तलवों में लेप मलते हुए अर्जुन किंचित सकुचाते हुए गुरु द्रोण से कहा--" गुरुवर, आपकी कृपा से आज मुझे संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर माना जाता है. एकलव्य का अंगूठा मागकर ,मेरे पथ के सभी कांटे आपने दूर कर दिए. कर्ण का प्रमाणपत्र तो आपने पहले ही निरस्त कर दिया था. अब मेरा कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं है...गुरुवर अब तीरंदाजी का कोई सम्मान भी मिल जाता तो मेरी भी प्रतिष्ठा बढ़ जाती और आपकी भी."



गुरु द्रोण ने करवट बदली. उदर में अठखेलियां करती हुई वायु को मुक्त किया और बोले---" हाँ अर्जुन, मैं भी कई दिनों से यही सोच रहा था. तुम्हें सम्मान मिल जाने से हमारी कोचिंग संस्था का नाम ऊँचा होगा और विद्यार्थियों की संख्या भी बढ़ जायेगी....ऐसा करो, हमारी पत्रिका के इसी अंक में एक सम्मान की घोषणा कर दो---' स्व. चिड़ीमार वनवासी तीरंदाजी सम्मान ' .....अर्जुन ने बीच में टोंका---" गुरुदेव,ये चिड़ीमार कौन था ?"

" यह एक बहेलिया था "---गुरु द्रोण ने बताया. " मेरे ही गांव का था. बाल्यावस्था में हम लोग इससे तीतर और बटेर मरवाकर चुपके से खाया करते थे. बड़ा अचूक निशानेबाज़ था." " और सुनो, ऐसा करना "---गुरु द्रोण ने रणनीति समझाते हुए कहा---" इस सम्मान के लिए एक तीन सदस्यीय निर्णायक मंडल बना लो...एक तो कृपाचार्य ही हो जायेंगे. दो और लोगों के नाम सोचकर उन्हें पत्र लिख दो.मगध और काशी के आचार्यों को ही रख लो, उनकी नियुक्ति के समय मैं ही एक्सपर्ट था.कोई गड़बड़ न होगी. अपना बायोडाटा बनाकर तीनो निर्णायकों के पास भेज दो...अगर दूसरे लोगों की प्रविष्टियां आती हैं तो उन्हें भेजने की आवश्यकता नहीं है...यह तो सभी जानते ही हैं कि तुम संसार के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हो."

अर्जुन ने पुलकित होकर द्रोण के चरणो में सिर रखा और सीधे पत्रिका-कार्यालय चला गया.

त्रैमासिक पत्रिका-' आखेट ' के ताज़ा अंक में ' स्व. चिड़ीमार वनवासी तीरंदाजी सम्मान ' की सूचना प्रकाशित हुई. पात्र व्यक्तियों से प्रविष्टियां मगाई गई थीं. अन्य लोगों के साथ कर्ण और एकलव्य ने भी प्रविष्टि भेजीं जिन्हें पत्रिका कार्यालय में ही जमा कर दिया गया. गुरु द्रोण की तरफ से एक पत्र लिखकर कर्ण और एकलव्य को सूचित किया गया कि चूँकि आपने अपने बायोडाटा में जाति-प्रमाणपत्र नहीं लगाया था, अतएव आपकी प्रविष्टि विचार योग्य नहीं पाई गई.

'आखेट ' के दीपावली विशेषांक में, 'स्व. चिड़ीमार वनवासी तीरंदाजी सम्मान ' अर्जुन को देने की घोषणा प्रकाशित हुई और यह भी सूचना दी गई कि नववर्ष के प्रथम दिन हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र यह सम्मान प्रदान करेंगे.

इस सूचना के बाद दुर्योधन वगैरह ने कुछ हो-हल्ला मचाया लेकिन पितामह ने उन्हें " घर की ही बात है "-का हवाला देकर शांत करा दिया.

कहानी खत्म कर बेताल ने विक्रम से पूछा---" राजन् तनिक विचार कर बताओ ! यह सम्मान देकर द्रोण ने किसकी प्रतिभा का अपमान किया है ??? "
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4 comments:

jhun2wala said...

ये विक्रम को आपने बवासीर पीड़ित बनाकर नेपोलियन बना दिया

Tulika Sharma said...

युग बदल जाते हैं पर मनुष्य का मूल स्वाभाव (basic instinct)नहीं बदलता ...सम्मान की ये अदम्य इच्छा कितना कुछ छीनती है हमसे ...कितना अपमान करती है हमारा ..हमें पता नहीं चलता ...विमलेन्दु शुक्रिया एक अच्छी पोस्ट पढाने के लिए

***Punam*** said...
This comment has been removed by the author.
Mukhar said...

'सम्मान सम्मान' के इस खेल को अब जन जन जानता है. सो, अपमान की तो कोई बात ही नहीं. हाँ, सम्मान देने वाला और प्राप्तकर्ता ही कदाचित थोडा अपने 'संगी -साथियों' के सामने नज़र न उठा सके.
लेख बहुत impressive है.