शाम को छत पर टहलती लड़कियाँ
किसी और समय की लड़कियों से
होती है अलग.
टहलते-टहलते
ज़रा सी एड़ी उठा
होकर थोड़ा बेचैन
देखतीं बार बार--
कि आ रहा होगा
तीन दुर्गम पहाड़ियों को करता पराजित
उनका राजकुमार
लेकर दुर्लभ फल.
सूरज उतर रहा होता है उस वक़्त
भीतर उनके
चाँद निकल रहा होता है
स्वप्नलोक के किसी दूत सा
उनके अपने आकाश में.
जुमलों से पीछा छुड़ा
वे निकल भागती हैं वेदों से
और छुप जाती हैं
मोनालिसा की मुस्कान में.
न जाने कहाँ कहाँ से निकल
आ जाती हैं वे छत पर.
सड़क से गुज़रते हुए
छत की ओर देखने पर
आकाश के करीब दिखती हैं
शाम को छत पर टहलती लड़कियाँ.
2 comments:
Bahut sundar chitra kheencha hai aapne
शुक्रिया ओंकार जी....
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