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Sunday, 4 December 2011

कविता : ' जो इतिहास में नहीं होते '


जो लोग इतिहास में  
दर्ज़ नहीं हो पाते
उनका भी एक गुमनाम इतिहास होता है.

उनके किस्से
मोहल्ले की किसी तंग गली में
दुबके मिल जाते हैं.
किसी पुराने कुएं की जगत पर
सबसे मटमैले निशान में भी
उन्हें पहचाना जा सकता है.

ऐसे लोग, आबादी के
किसी विस्मृत वीरान के
सूनेपन में टहलते रहते हैं.

एक पुराने मंदिर के मौन में
गूँजती रहती है इनकी आवाज़.

कुछ तो 
अपनी सन्ततियों के पराजयबोध में
जमें होते हैं तलछट की तरह.
तो कुछ
पुरखों की गर्वीली भूलों की दरार में
उगे होते हैं दूब की तरह.

जिन लोगों को 
इतिहास में कोई ज़गह नहीं मिलती
उन्हें कोई पराजित योद्धा
अपने सीने की आग में पनाह देता है.

ऐसे लोगों को
गुमसुम स्त्रियाँ
काजल की ओट में भी
छुपाए लिए जाती हैं अक्सर.

ऐसे लोग 
जो इतिहास में नहीं होते
किसी भी समय
ध्वस्त कर देते हैं इतिहास को।

4 comments:

kuldeep kunal said...

vanchito evem sangharsh sheelo ka arth evem vichaar jhaankta hai aapki kavita mein... taazgi aur aagrah jaagne aur jaan-ne ka saath-saath chalta hai... aur bhi kavitaein lagaaiye apne blog par vimlendoo ji...

kuntirama said...

ऐसे लोग, जो इतिहास में नहीं होते
किसी भी समय ,ध्वस्त कर देते हैं इतिहास को...!
क्या बात है !... क्या बात है !!...क्या विज़न ..क्या अभिव्यक्ति ...! ..वाह !!
मेरी सारी शुभकामनाएं आपकी इस पैनी दृष्टि के लिए , आपके इस खूबशूरत तेवर के लिए , आपकी दीर्घ स्वस्थ आयु के लिए !...मुझे आपके रीवा का होने पर गर्व है ...और इस पर कि मै भी इसी रीवा में हूँ !

Unknown said...

कुलदीप जी, धन्यवाद...और कविताएँ हैं ब्लॉग पर....समय लगे तो पढ़ियेगा...

Unknown said...

कुन्तीरामा जी....अब आपको धन्यवाद कहते भी नहीं बन रहा है...इस छोटे से शहर से कोई बड़ी बात अगर हो भी जाये, तो मानने में संकोच होता है.