कितने लोगों के खामोश दुखों,
बेक़रार प्यार में बोलते थे मेहदी हसन.....
कैसी भयानक रातें हम काट लेते थे
इस आवाज़ की लाठी पकड़ कर.....
रेगिस्तान पार करते हुए जब पानी खत्म हो जाता
जंगल मे रास्ता भटक जायें
जिनका कोई घर नहीं, दर नहीं...
उनके लिए एक ज़गह थी ये आवाज़..............
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