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Thursday 21 June 2012

मेरा तुम्हारा रिश्ता


मेरा तुमहारा रिश्ता वही है
जो प्यास का पानी से है
जो आग का ताप से है
जो पहाड़ का ऊँचाई से है
जो पेड़ का अपनी जड़ों से होता है ।

जैसे नदी का होता है तल से
जैसे चन्द्रमा का है अपनी पृथवी से
जैसे सोने का होता है सुनहरेपन से ।

कि तुम मेरे लिए इतनी ज़रूरी हो
जैसे नीली चीज़ के लिए नीला रंग
लाल के लिए लाल
या कह लो
कि जैसे इन्द्रधनुष के लिए सात रंग ।

मैं तुम्हें वैसे ही याद करता हूँ
जैसे खेत याद करता है बीज को
जैसे धरती याद करती है पहली बारिश को
जैसे घर की मुंडेर याद करती है
एक नीले पंखों वाली चिड़िया को
जैसे कविता याद करती है लय को ।

तुम्हारे होने की आश्वस्ति
वैसी ही है
जैसे संसार के वायुमंडल में ऑक्सीजन का होना
जैसे लगातार हमारी सांसों का चलना
और सीने की धक् धक् ।

कि तुम्हें जब भी महसूस करना होता है
मैं अपनी नब्ज़ पर हाथ रखता हूँ ।

----------------------- विमलेन्दु

2 comments:

हेमा अवस्थी said...

बेहद खूबसूरत एहसास है इस कविता में ...अपने अंदर अपने प्रिय को महसूस करना वो भी इस हद तक "कि तुम्हें जब भी महसूस करना होता है
मैं अपनी नब्ज़ पर हाथ रखता हूँ ।,
अद्भुत अभिव्यक्ति ..............

vandana gupta said...

्खूबसूरत अहसास