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Friday 13 July 2012

हे स्त्री





डगमग आस्थाओं के बावजूद
अभी
सब कुछ बीत नहीं गया है.

अभी पाना है उसे
जो अथाह है.....अमृत है.
जो दिखता है अलभ्य जैसा
क्षण क्षण पा लेने की
चुनौती देता हुआ.

हे स्त्री !
आकांक्षा के
इस सहज उत्कर्ष में
मैं तुम्हारी
सदय उपस्थिति के लिए
प्रार्थना करता हूँ ।

-------------विमलेन्दु

3 comments:

Onkar said...

सुन्दर पंक्तियाँ

Unknown said...

इस कविता में

Unknown said...

कवि कुमार अम्‍बुज की कविता 'एक स्‍त्री पर कीजिए विश्‍वास' की पंक्तियां और अनेक शब्‍दों की सीधी गूंज शामिल है। उनकी पंक्तियां हैं- ''यह जो अमृत है, यह जो अथाह है, यह जो अलभ्‍य है, उसे पा सकने के लिए, एक स्‍त्री की हँसी, उसके उफान पर कीजिए विश्‍वासृ,,,'' यों भी अम्‍बुज जी की यह कविता पर्याप्‍त चर्चित है।