हे स्त्री
डगमग आस्थाओं के बावजूद
अभी
सब कुछ बीत नहीं गया है.
अभी पाना है उसे
जो अथाह है.....अमृत है.
जो दिखता है अलभ्य जैसा
क्षण क्षण पा लेने की
चुनौती देता हुआ.
हे स्त्री !
आकांक्षा के
इस सहज उत्कर्ष में
मैं तुम्हारी
सदय उपस्थिति के लिए
प्रार्थना करता हूँ ।
-------------विमलेन्दु
3 comments:
सुन्दर पंक्तियाँ
इस कविता में
कवि कुमार अम्बुज की कविता 'एक स्त्री पर कीजिए विश्वास' की पंक्तियां और अनेक शब्दों की सीधी गूंज शामिल है। उनकी पंक्तियां हैं- ''यह जो अमृत है, यह जो अथाह है, यह जो अलभ्य है, उसे पा सकने के लिए, एक स्त्री की हँसी, उसके उफान पर कीजिए विश्वासृ,,,'' यों भी अम्बुज जी की यह कविता पर्याप्त चर्चित है।
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