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Monday, 20 August 2012

हमारा चाँद दिख जाये, हमारी ईद हो जाये !























ईद आने को होती है तो मुझे ग़ालिब याद आने लगते हैं--

हमें क्या वास्ता ग़ालिब, ज़माने भर की ईदों से ।
हमारा चाँद दिख  जाये, हमारी  ईद  हो  जाये ।। 


बड़ी खूबसूरती से शायर ने ईद की मिठास को मुहब्बत की दीवानगी से जोड़ दिया है. दरअसल ईद के साथ चाँद का जुड़ा होना, इस त्यौहार को एक कॉस्मिक विस्तार देता है. दुनिया भर की तमाम मान्यताओं में चाँद प्रेम और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक रहा है. प्रेमियों के लिए वस्ल और फ़िराक यानी मिलन और विरह, दोनों ही दशाओं में चाँद की उपस्थिति भावोद्रेक का माध्यम बन जाती है. चाँद की रोशनी और शीतलता कल्याणकारी मानी जाती है. यद्यपि ईद के लिए चाँद दिखने का अर्थ एक महीने के खत्म होने और नये महीने की शुरुआत से है लेकिन चाँद के वृहत्तर प्रतीकार्थों को ज़हन में रखने से यह त्योहार सार्वभौमिक और धर्मनिरपेक्ष अर्थ ग्रहण कर लेता है.

लेकिन ईद का मतलब होता है--खुशी, हर्ष, उल्लास. ...और फितरा, एक तरह के दान को कहते हैं. यानी ईद-उल-फितर का का अर्थ हुआ--दान से मिलने वाली खुशी. अरबी कैलेण्डर का नौवां महीना रमजान का होता है. और नौवें महीने की समाप्ति के बाद दसवां महीना शवाल का आता है. इसी माह-ए-शवाल के पहले दिन ईद मनाई जाती है. 

दरअसल ईद, उन लोगों के लिए एक ईनाम है जो एक महीने तक बगैर अन्न-जल के अल्लाह की इबादत में लगे रहते हैं. यह अनन्य आस्था का पुरस्कार है. यह इन्सान के पौरुष, ईमानदारी और समर्पण का पुरस्कार है. इस एक महीने की इबादत भी कुछ अलग और ज़रा कठिन होती है. अपनी सुबह की खूबसूरत नींद को छोड़कर सहरी खाना और रात की नमाज़ तरावी पठ़ना. कुरआन का यथासंभव अतिरिक्त पाठ और आख़ीर के दिनों में शब-ए-क़दर की खास नमाज़........इतनी कठिन इबादत के बाद जो खुशी मनाने का दिन मिलता है वही है---ईद.
 
साफ ज़ाहिर है कि ईद के त्यौहार के साथ दो तरह के भाव जुड़े होते हैं. पहला, जीवन में संघर्ष और तकलीफ उठाने की महत्ता स्थापित करना और दूसरा, दीन-हीनों के प्रति अल्लाह के नुमाइंदे के बतौर दयाभाव रखना. अपने जीवन में अगर तकलीफें न हों तो हमें दूसरे की तकलीफ उतनी गहरी नहीं लगती. पराई पीर को वही बेहतर जान सकता है जिसके पैर में कभी बिबाई फटी हो. शायद इसीलिए इस्लाम एक महीने का कठिन रोज़ा रखने का प्रावधान करता है.

ईद-उल-फितर  को मीठी ईद भी कहते है. इस त्यौहार में मीठी चीज़ें खाने और खिलाने का रिवाज़ है. मांसाहारी भोजन का ज़िक्र नहीं है. साथ ही कुछ और भी शर्तें है. मसलन, इस त्यौहार को मनाने के पहले फितरा और ज़कात निकालना ज़रूरी होता है. हज़रत मोहम्मद साहेब (मुसलमानों के पैगम्बर ) ने साफ तौर पर  कहा है कि जो कोई फितरा (दान ) नहीं निकालेगा, वह ईद की नमाज़ पढ़ने ईदगाह नहीं आये.

फितरा और ज़कात दो अलग चीज़ें हैं. फितरा, अनाथ, मासूम और गरीबों के लिए होती है ताकि वो भी अपनी खुशियों का उत्सव मना सकें. फितरे और ज़कात की अदायगी के बगैर रमज़ान अधूरा माना जाता है. ये सरकार की ओर से लगाये जाने वाले कर नहीं हैं. इन्हें अपने निज़ी पैसों से अदा किया जाता है. इस्लाम में यह आदेश है कि सबसे पहले अपने पड़ोस में देखो कि कौन ज़रूरतमंद है, फिर मोहल्ले में, फिर रिश्तेदारों में, फिर अपने शहर में, उसके बाद कोई और जडरूरतमंद हो तो उसकी ज़रूरत भी पूरा करो. फितरा, उन रोज़ेदारों का कर्तव्य है जो वयस्क हैं. हर वयस्क रोज़ेदार के लिए ईद की नमाज़ पढ़ने के पहले दान करना अनिवार्य है, अन्यथा उनका रोज़ा और ईद स्वीकार नहीं की जायेबीगी. 

जकात, आय का चालीसवाँ भाग, यानी एक रुपये में 2.5 रु. होता है. इसमें साल भर की अपनी कमाई का इतना हिस्सा दान करना होता है, वशर्तें दान देने वाला कर्ज़दार  न हो. इस्लाम में दान पर बहुत ज़ोर है. दान की राशि निर्धन, अपंग लोगों को देना ज़्यादा अच्छा माना गया है. सबसे पहले उन पड़ोसियों, रिश्तेदारों को दान देना जो ज़रूरतमंद हैं. ईदगाह अथवा नमाज़ के लिए जाने और लौटने के लिए मुख़्तलिफ रास्तो का इस्तेमाल किया जाता है ताकि हम यह देख सकें कि कौन ऐसा है जो इस खुशी में शरीक नहीं हो पा रहा है. उसकी मदद करने से ईद की नमाज़ का फल बढ़ जाता है. 

हमारे देश में होली और ईद , ये दो ऐसे त्यौहार हैं जिनमें धार्मिक आग्रह कम हैं और प्रेम, सौहार्द्र का भाव अधिक. दोनों ही समुदाय के लोग इन त्यौहारों में शरीक होते हैं क्योकि इस दिन उन्हें अल्लाह या ईश्वर के करीब नहीं, मनुष्य के करीब जाना होता है. 

7 comments:

Onkar said...

ईद के बारे में मैंने इस तरह कभी नहीं सोचा था. बधाई

सदा said...

क्योकि इस दिन उन्हें अल्लाह या ईश्वर के करीब नहीं, मनुष्य के करीब जाना होता है.
बिल्‍कुल सच कहा ... उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सार्थक लेख ...

Rewa Tibrewal said...

jo yahan padha....sach may nahi pata thi....bahut bahut shukriya....is lekh kay liye

मेरा मन पंछी सा said...

सार्थक लेख
:-)

Unknown said...

आप सब दोस्तों को बहुत-बहुत धन्यवाद.

दिगम्बर नासवा said...

सार्थक प्रस्तुति ...
आपको ईद की बधाई ....