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Tuesday, 30 October 2012

तुम दूर भी उतनी ही हो..

वैसे तुम
मुझसे दूर भी उतनी ही हो

जितनी आँखो से दूर होती है नींद
जितना पृथ्वी से दूर है चन्द्रमा.

जितना बीज से दूर होता है पेड़
जितनी घंटियों से दूर है उनकी गूँज
जितना जहाज़ से दूर है तट.

जितनी आँगन से दूर है गौरैया
जितनी होठों से दूर है मुस्कान
जितनी हीरे से दूर है चमक
जितना सुबह से दूर है सूरज.

वैसे तुम मुझसे
दूर भी उतनी ही हो
जितनी अगस्त से दूर है जुलाई ।

.................................विमलेन्दु

2 comments:

poonam said...

sunder chitran

Bhavna said...

बहुत प्यारी कविता.. बधाई !
वाकई जुलाई-अगस्त के बीच की दूरी रहस्यमय लगने लगी... :)