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Monday, 27 October 2014

वो आदमी

वो आदमी
जो उठ कर अँधेरे मुह
चलता रहता है दिन भर
देर रात
ऐसे लौटता है घर
कि कोई गुनाह करके लौटा हो।

जिसके पसीने में
होती है विद्रोह की गंध
और माथे की सलवटों में
असहमति की लिपि।

जो मित्रों के बीच भी
हँसता नहीं
और भीड़ में
हो जाता है भूमिगत।

बसंत जिसके लिए
एक मौसम परिवर्तन से अधिक
कुछ नहीं।

और कविता
एक परदा है
जिसे गिराकर
वह बदलता है कपड़े।

उस आदमी के बारे में
सबसे दयनीय सूचना यह है
कि उसके खिलाफ
कोई रिपोर्ट दर्ज़ नहीं है
किसी थाने में !

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