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Tuesday, 11 September 2012

अनुनाद

एक तितली गूँजती है
फूल की पंखुड़ियों पर
तो रंग खिलखिलाते हैं ।

चन्द्रमा गूँजता है
पृथ्वी की कक्षा में 
तो रोशनी मुस्कुराती है
गहरी रात में भी ।

धरती के भार में गूँजता है बीज
तो साँसें लय मे होकर
आ जाती हैं सम पर ।

समुद्र के भीतर गूँजता है अतल
तो पानी का संगीत बजता है ।

भोर की पत्ती पर
गूँजती है ओस की बूँद
तो सूरज जागता है ।

देह के भीतर
गूँजती है देह
तो जनमता है
जीवन का अनुनाद ।

4 comments:

मुकेश कुमार सिन्हा said...

feeling resonance:)

अनामिका की सदायें ...... said...

sach kaha deh bheetar deh goonjne se hi jiwan ka anunad goonjta hai.

sunder abhivyakti.

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह....
सुन्दर..
बहुत सुन्दर!!!!

अनु

Unknown said...

बहुत शुक्रिया सदा जी, मुकेश जी, अनामिका जी, अनु जी........