फूल की पंखुड़ियों पर
तो रंग खिलखिलाते हैं ।
चन्द्रमा गूँजता है
पृथ्वी की कक्षा में
तो रोशनी मुस्कुराती है
गहरी रात में भी ।
धरती के भार में गूँजता है बीज
तो साँसें लय मे होकर
आ जाती हैं सम पर ।
समुद्र के भीतर गूँजता है अतल
तो पानी का संगीत बजता है ।
भोर की पत्ती पर
गूँजती है ओस की बूँद
तो सूरज जागता है ।
देह के भीतर
गूँजती है देह
तो जनमता है
जीवन का अनुनाद ।
4 comments:
feeling resonance:)
sach kaha deh bheetar deh goonjne se hi jiwan ka anunad goonjta hai.
sunder abhivyakti.
वाह....
सुन्दर..
बहुत सुन्दर!!!!
अनु
बहुत शुक्रिया सदा जी, मुकेश जी, अनामिका जी, अनु जी........
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