भद्रलोक के लिए
एक भदेस टिप्पणी था य़ह दृश्य ।
जब वो बड़ी हड़बड़ी में
निकला था घर से
और सबसे मुस्कुरा के
बात की थी उसने ।
वह बच्चे के लिए बस्ता खरीदने
जा रहा था ।
पापा उसे बता रहे थे
कि हमारे कपड़े
पेरिस में धुलने जाते थे,
यह रास्ता काटने का
उपक्रम रहा होगा ।
बहरहाल !
दूकानदार मुस्कुराने का अभ्यासी था,
इसीलिए मुस्कुरा रहा था ।
उसे एक ऐसा बस्ता चाहिए था
जिसमें सभी किताबों को रखने के बाद
किसी खंधे में उसकी हैसियत भी छुपी रहे ।
बहुत देर बाद
जब दूकानदार ने सुनी उसकी बात
तब तक बच्चा
बैठ चुका था पापा के कंधे पर ।
पिता बस्ते देख रहा था
बेटा उसके बाहर
दूकानदार की नज़र
इनके बीच थी कहीं ।
पिता एक एक बस्ते की कीमत
कई बार पूछता
बेटा कंधे से उतर गया
दूकानदार मुस्कुराता रहा ।
यद्यपि
पिता ने इस बीच
उन बस्तों को
बच्चों के लिए उनुपयोगी सिद्ध करने की ग
दयनीय कोशिश की ।
लेकिन ऐसा करते हुए
उसके माथे पर एक रेखा उभर आयी थी ।
पता नहीं
वह रेखा ऊपर थी या नीचे
मगर उसके माथे पर एक ऐसी शिकन थी
कि कमबख्त
गरीबी रेखा लगती थी ।
एक भदेस टिप्पणी था य़ह दृश्य ।
जब वो बड़ी हड़बड़ी में
निकला था घर से
और सबसे मुस्कुरा के
बात की थी उसने ।
वह बच्चे के लिए बस्ता खरीदने
जा रहा था ।
पापा उसे बता रहे थे
कि हमारे कपड़े
पेरिस में धुलने जाते थे,
यह रास्ता काटने का
उपक्रम रहा होगा ।
बहरहाल !
दूकानदार मुस्कुराने का अभ्यासी था,
इसीलिए मुस्कुरा रहा था ।
उसे एक ऐसा बस्ता चाहिए था
जिसमें सभी किताबों को रखने के बाद
किसी खंधे में उसकी हैसियत भी छुपी रहे ।
बहुत देर बाद
जब दूकानदार ने सुनी उसकी बात
तब तक बच्चा
बैठ चुका था पापा के कंधे पर ।
पिता बस्ते देख रहा था
बेटा उसके बाहर
दूकानदार की नज़र
इनके बीच थी कहीं ।
पिता एक एक बस्ते की कीमत
कई बार पूछता
बेटा कंधे से उतर गया
दूकानदार मुस्कुराता रहा ।
यद्यपि
पिता ने इस बीच
उन बस्तों को
बच्चों के लिए उनुपयोगी सिद्ध करने की ग
दयनीय कोशिश की ।
लेकिन ऐसा करते हुए
उसके माथे पर एक रेखा उभर आयी थी ।
पता नहीं
वह रेखा ऊपर थी या नीचे
मगर उसके माथे पर एक ऐसी शिकन थी
कि कमबख्त
गरीबी रेखा लगती थी ।
1 comment:
आह.....
बेहद मार्मिक......
सीने में दर्द सा पैदा करती हुई रचना....
अनु
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